________________ परिशिष्टः 9 191 पृष्ठ क्र. 140 140 129 क्र. गाथा 125 न चाधो गौरवाभावा-न्न तिर्यक् प्रेरकं विना / न च धर्मास्तिकायस्या-भावाल्लोकोपरि व्रजेत् // 125 // 140 526 मनोज्ञा सुरभिस्तन्वी, पुण्या परमभासुरा / प्राग्भारा नाम वसुधा, लोकमूनि व्यवस्थिता // 126 // 127 नृलोकतुल्यविष्कम्भा, सितच्छत्रनिभा शुभा / ऊर्ध्वं तस्याः क्षिते: सिद्धाः, लोकान्ते समवस्थिताः // 127 // 128 कालावसरसंस्थाना, या मूषा गतसिक्थका / तत्रस्थाकाशसङ्काशा-ऽऽकारा सिद्धावगाहना // 128 // 142 ज्ञातारोऽखिलतत्त्वानां, द्रष्टारश्चैकहेलया / गुणपर्याययुक्तानां, त्रैलोक्योदरवर्तिनाम् // 129 // 142 130 अनन्तं केवलज्ञानं, ज्ञानावरणसङ्क्षयात् / अनन्तं दर्शनं चैव, दर्शनावरणक्षयात् // 130 // 143 शुद्धसम्यक्त्वचारित्रे, क्षायिके मोहनिग्रहात् / अनन्ते सुखवीर्ये च, वेद्यविघ्नक्षयात्क्रमात् // 131 // आयषः क्षीणभावत्वात्, सिद्धानामक्षया स्थितिः / नामगोत्रक्षयादेवा-मूर्त्तानन्ताऽवगाहना // 132 // 143 यत्सौख्यं चक्रिशक्रादि-पदवीभोगसम्भवम् / ततोऽनन्तगुणं तेषां, सिद्धावक्लेशमव्ययम् // 133 // यदाराध्यं च यत्साध्यं, यद् ध्येयं यच्च दुर्लभम् / चिदानन्दमयं तत्तैः, सम्प्राप्तं परमं पदम् // 134 // नात्यन्ताभावरूपा न च जडिममयी व्योमवद् व्यापिनी नो, न व्यावृत्तिं दधाना विषयसुखघना नेष्यते सर्वविद्भिः। सद्रूपात्मप्रसादाद् दृगवगमगुणौघेन संसारसारा, निःसीमाऽत्यक्षसौख्योदयवसतिरनिःपातिनी मुक्तिरुक्ता // 135 // 144 इत्युद्धृतो गुणस्थान-रत्नराशिः श्रुतार्णवात् / पूर्वर्षिसूक्तिनावैव, रत्नशेखरसूरिभिः // 136 // 143 132 133 143 144 135 136 145