________________ કષાયપ્રાભૃતચૂર્ણિ અને જયધવલાટીકામાં રસઉદ્વર્તનાનું સ્વરૂપ 201 'उक्कड्डणाए परूवणा / 21. एत्तो उक्कड्डणाए अचरिमफद्दयं अहिकीरदि त्ति भणिदं होइ / चरिमफद्दयं ण उक्कड्डिज्जदि / 22. कुदो ? उवरि अइच्छावणा-णिक्खेवाणमसंभवादो / दुचरिमफद्दयं पि ण उक्कड्डिज्जदि / 23. एत्थ कारणमइच्छावणा-णिक्खेवाणमसंभवो चेव वत्तव्यो / एवमणंताणि फद्दयाणि ओसक्किऊण तं फद्दयमुक्कड्डिज्जदि / 24. एवं तिचरिम-चदुचरिमादिकमेणाणंताणि फद्दयाणि जहण्णाइच्छावणा-णिक्खेवमेत्ताणि हेह्रदो ओसरिदूण तदित्थफद्दयमुक्कड्डिज्जदि, तत्थाइच्छावणा-णिक्खेवाणं पडिवुण्णत्तदंसणादो / एत्तो हेट्ठिमफद्दयाणं जहण्णफद्दयपज्जंताणमुक्कड्डणाए णत्थि पडिसेहो / ' 'हिन्दी अनुवाद - उत्कर्षणकी प्ररूपणा / 21. आगे उत्कर्षणकी अपेक्षा अचरम स्पर्धकका अधिकार है यह उक्त कथनका तात्पर्य है / अन्तिम स्पर्धकका उत्कर्षण नहीं होता / 22. क्योंकि अन्तिम स्पर्धकके ऊपर अतिस्थापना और निक्षेपकी प्राप्ति सम्भव नहीं है / द्विचरम स्पर्धकका भी उत्कर्षण नहीं होता / 23. यहाँ पर भी अतिस्थापना और निक्षेपकी प्राप्ति सम्भव नहीं है यही कारण कहना चाहिए /