________________ 175 श्रीयतिदिनचर्या अवचूर्णियुता संकिय 1 मक्खिय 2 निक्खित्त 3 पिहिय 4 साहरिय 5 दायगु 6 म्मिस्से 7 / अपरिणय 8 लित्त 9 छड्डिय 10 एसणदोसा दस हवंति // 79 // तत्र शङ्कितं सम्भाविताधाकर्मादिदोषं भक्तादि 1 प्रक्षितंआरूक्षितं 2 निक्षिप्तं-न्यस्तं सच्चित्तादिषु 3 पिहितं-स्थगितं 4 संहृतंतस्मादन्यत्र क्षिप्तं 5 दायको-बालादिः 6 उन्मिश्रं - मिश्रीकृतं सचित्तयुक्तं 7 अपरिणतं-अप्रासुकादि कालहीनं 8 लिप्तं-खरण्टितं 9 छर्दितंपरिशाटिमत् 10, एते एषणादोषाः- पिण्डग्रहणदूषणानि दश भवेयुरिति गाथार्थः // यदाहुः - 'सोलस उग्गमदोसे'त्यादि // 1 // // 79 // ___ अथ द्विचत्वारिंशद्दोषाणां मध्ये षोडश पिण्डोद्गमदोषाः, तेष्वाद्यमाधाकर्म, तद्विचारं गाथासप्तकेनाह - साहुनिमित्तं भत्ताइ जं गिही कुणइ तं अहाकम्मं / सचित्तस्साचित्तीकरणमचित्तस्स वा पयडं // 80 // उद्दिसियं तं तु कुराइयस्स दहिउलवणाइ उद्दिसिय / अहकम्मजुअं पूडू मीसं कयमप्पजइजोगं // 81 // मुणिजोग्गं ठवइ पिहु जं सा ठवणा इमा उ (सा ठवणा पयरणे उ / पाहुडिया) साहुवओगाय थिरं दुयं व जं पगडणं कुणइ // 82 // पाओरण दीवाई पयडणं देइ वत्थुणो मज्झे / कीयं तु मुल्लगहियं पामिच्चयमुद्धियं जं तु // 83 //