________________ हस्तिकुण्डी का इतिहास-३८ ये राष्ट्रकूट बहुत प्रसिद्ध रहे हैं / इलौरा की गुफाओं के दशावतार वाले मन्दिर में दन्तिदुर्ग के एक शिलालेख में यह लिखा है न वेत्ति खलु कः क्षितौ प्रकटराष्ट्रकटान्वयं / अर्थात् पृथ्वी पर प्रसिद्ध राष्ट्रकूट वंश को कौन नहीं जानता ? दक्षिण पर राज्य करने वाले राष्ट्रकूटों के पचहत्तर दानपत्र मिले हैं। राष्ट्रकूट गोविन्दराज तृतीय (ई. सन् 808) का राधनपुर का दानपत्र बहुत प्रसिद्ध है। हस्तिकुण्डी के राष्ट्रकूट इन्हीं राष्ट्रकूटों की परम्परा के थे। यों तो राष्ट्रकूट शैव, नैष्णव और शाक्त मतों के अनुयायी रहे हैं लेकिन गोविन्दराज तृतीय का पुत्र अमोघवर्ष, जैनाचार्य जिनसेनसूरि का शिष्य था। अमोघवर्ष को कृति प्रश्नोत्तर रत्नमालिका में लिखा है प्ररिणपत्य वर्द्धमानं प्रश्नोत्तररत्नमालिकां वक्ष्ये / अर्थात वर्द्धमान ( महावीर ) भगवान को प्रणाम करके 'प्रश्नोत्तर रत्नमालिका' की रचना क ता हैं। जैनों के उत्तरपुराण में अमोघवर्ष के सम्बन्ध में एक श्लोक लिखा है यस्य प्रांशुनखांशुजाल विसरद्धान्तराविर्भवत्, / संस्मर्ता स्वममोघवर्षनृपतिः पूतोऽहमद्ये त्यलं, स श्रीमाजिनसेनपूज्य भगवत्पादो जगन्मङ्गलम् //