________________ हस्तिकुण्डी के राजा-३६ अर्थात् जिस अमोघवर्ष की चरण रज को अनेक राजारों के मुकुट छते थे, वह राजा अमोघवर्ष पूज्य जिनसेनसूरि के चरणों की वन्दना कर अपने आपको धन्य समझता था। हस्तिकुण्डी के राठौड़ राजा भी सम्भवतः इसी अमोघवर्ष के सामन्त थे। हस्तिकुण्डी नगरी प्राज नहीं है परन्तु इसकी अमर कोतिस्वरूप राता महावीरजी का भव्य जिनालय अाज भी पूर्व पुरुषों की यशोगाथा अपने में संजोये है। इस प्राचीन मन्दिर के शिलालेख अपने अन्तर में इसके निर्माताओं को गौरव गाथा युगों से गाते आ रहे हैं। हस्तिकूण्डी के शासकों के सम्बन्ध में ज्ञात सामान्य जानकारी यहाँ प्रस्तुत है। हरिवर्मा राठौड़वंशीय हरिवर्मा बड़े प्रतापी राजा थे / ये आठवीं सदी में हस्तिकुण्डी पर राज्य करते थे। इनकी रानी का नाम रुचि था। विदग्धराज इनके पुत्र थे। विदग्धराज . राजा हरिवर्मा के पश्चात् विदग्धराज हस्तिकुण्डी की गद्दी पर बैठे। ये मेवाड़ के राजा अल्लट के मित्र थे। अल्लट के परामर्श से ही विदग्धराज ने बलिभद्रसूरिजी को हस्तिकुण्डी में बुलाया था और उनके उपदेश से जैनधर्म भी स्वीकार किया था। विदग्धराज ने हस्तिकुण्डी में महावीर भगवान के मन्दिर का जीर्णोद्धार करवाया एवं प्रतिष्ठा भी करवाई।