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________________ नवमः सर्गः 499 ते तव स्तनयो: कुचयोः अपित्यकासु ऊर्ध्वभूमिषु पर्वतोपरितनसमतलप्रदेशेष्विति यावत्, ( 'भूमिरूर्वमधित्यका' इत्यमरः ) एतेन स्तनयोः पर्वतत्वं गम्यते मम नखः कररुहः इन्दुः चन्द्रः तस्य या लेखा रेखा तस्याः यः अभ्युदयः उदयः (सर्वत्र ष० तत्पु० ) तेन अद्भुतम् आश्चर्यम् (तृ० तत्पु० ) तनोतु करोतु / तव कुचो. परि मया क्रियमाणानि नखक्षतानि पर्वतोपरि चन्द्रकलायन्तामिति भावः // 117 // व्याकरण--स्पृहयामि 'स्पृहेरीप्सितः' (1 / 4 / 36 ) से कर्म में चतुर्थी / श्रवस् श्रूयतेऽनेनेति श्रृ + असि ( करणे)। साक्षी ( साक्षाद् द्रष्टा ) सह + अक्ष + इन् ( 'साक्षाद् द्रष्टरि संज्ञायाम्' 5 / 2 / 91 ) / माक्षिकम् मक्षिकाभिः संभृत्य कृतमिति मक्षिका + अण् / अधित्यकासु पर्वतस्य आरूढं स्थलमिति अधि + त्यकन् संज्ञा में ('उपाधिभ्यां त्यकन्नासन्नारूढयो: 5 / 2 / 34 ) अद्भुतम् यास्क के अनुसार अभूतमिव / अनुवाद-"(ओ भैमि ! ) मैं तुम्हारा अधर चाह रहा हूँ जिसमें से निकल रहे मधु ( शहद ) से तुम्हारे वचन मधुमय बन जाते हैं, जिसके साक्षी कान हैं। तुम्हारे कुचों के पठारों पर मेरा नाखून ( सखियों को) उदय हुई चन्द्र-कला का आश्चर्य पैदा कर दे" // 117 // टिप्पणी-भाव यह है कि मैं अधरपान और नखक्षत का इच्छुक हूँ। वाणी की मधुरता से अधर के मधुमय होने का अनुमान होने के कारण अनुमानालंकार है। विद्याधर अतिशयोक्ति कह रहे हैं शायद इसलिए कि स्तनों की ऊंचाई के साथ मधित्यका का अभेदाध्यवसाय हो रखा है। वे उपमा भी कह रहे हैं सम्भवतः वे नख में इन्दुलेखाभ्युदय का सादृश्य देख रहे हैं लेकिन सादृश्य वाक्य न होने से हम निदर्शना कहेंगे जहां सादृश्य गम्य रहता है। उदयाचल की ऊंचाई पर उदय होती हुई चन्द्रकला लाल-लाल होती है; स्तनों के उपरितन भाग पर हुआ नखचिह्न भी लाल-लाल होता है जिसे देखकर सखियों को यह आश्चर्य हो जाय कि ओ ! उदय शैल पर चन्द्र-कला उदय हो गई है। 'सवैः' 'श्रवः' ( सशयोरभेदात् ), 'स्तन' 'स्तनो' में छेक, 'साक्षि' माक्षि' में पदान्त-गत अन्त्यानुप्रास अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास है // 117 // न वर्तसे मन्मथनाटिका कथं प्रकाशरोमावलिसूत्रधारिणी। तवाङ्गहारे रुचिमेति नायकः शिखामणिश्च द्विजराविदूषकः // 11 //
SR No.032785
Book TitleNaishadhiya Charitam 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandev Pant
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year1979
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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