________________ 215 नैषधीयचरिते भिक्षा माँगता है, तब जाकर कमलों में वह सुन्दरता भरता है / यह उत्प्रेक्षा है : इसके साथ उपमा भी है, क्योंकि पाँच अंगों से भीख मांगने की तुलना साधु द्वारा पाँच घरों से माधुकरी-मधूकड़ी माँगने से की जा रही है। माधुकरी इसलिए कहते है कि वह मधुकरों-भ्रमरों की-सी वृत्ति होती है। मधुकर फूलफूल से मधु बटोरा करते हैं। साधु के लिए पाँच घरों से ही भीख बटोरने का विधान है / दमयन्ती का मुख, पैर और हाथ कमलों से भी अधिक सुन्दर हैं यह व्यतिरेक ध्वनि चल ही रही है। 'विधातु' 'विधातुः' में छेक अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास है। दमयन्ती के पैरों के वर्णन-प्रकरण में इस और पिछले श्लोक में भी मुख, हाथ आदि के वर्णन को प्रासंगिक ही समझिये अथवा यह सम्मिलित वर्णन है। एष्यन्ति यावद्गणनाद्दिगन्तान्नृपा स्मरार्ताः शरणे प्रवेष्टुम् / . इमे पदाब्जे विधिनापि सृष्टास्तावत्य एवाङ गुलयोऽत्र लेखाः // 105 / / अन्वयः-स्मरार्ताः नृपाः इमे पदाब्जे शरणे प्रवेष्टुम् यावद्गणनात् दिगन्तात् एष्यन्ति, विधिना अपि तावत्यः एव अगुलयः लेखाः अत्र सृष्टाः / टीका- स्मरेण कामेन आर्ताः पीडिताः ( तृ० तत्पु० ) नृपाः नृपतयः इमें एते पदे चरणी एव अब्जे कमले ( कर्मधा० ) शरणे रक्षके प्रवेष्टुम् प्रवेशं कर्तुम् यावती गणना यस्य तथाभूतात् ( ब० वी० ) अयवा यावती गणनेति ( सामस्त्ये अव्ययी० ) 'अपञ्चम्याः' इति पञ्चम्याम् अम्भावाभावः दिशाम् अन्तः तस्मात् (10 तत्पु० ) जातावेकवचनम् यावत्संख्यकेभ्यः दशभ्य इति यावत् दिगन्तेभ्य इत्यर्थः एष्यन्ति आगमिष्यन्ति, विधिना ब्रह्मणा अपि तावत्यः तावत्संख्यकाः एव अङ्गुलयः अङ्गुलिरूपा लेखाः रेखाः अत्र चरणद्वये सृष्टा; रचिताः / दशदिगन्तेभ्यो कामपीडिताः राजानः स्वयंवरे एतस्याः चरणकमलयोः शरणमागमिष्यन्तीति गणनार्थमिव ब्रह्मा दशाङ्गुलि-रूपेण दशरेखाः चरणयोः अरचयदिति भाव. // 105 // व्याकरण-आर्ताः आ + ऋ+ क्तः / नृपाः नन पान्तीति नृ + पा+ कः। अब्जम् इसके लिए पीछे श्लो० 102 देखिए। अङगुलयः यास्काचार्यानुसार 'अग्रगलिन्यो भवन्ति, अग्रकारिण्यो वो भवन्तीति' अग्र + /गल+इ ( निपातनात् साधुः ) / अनुवाद-काम-पीडित राजे ( कल स्वयंवर में ) इन चरणकमलों की