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________________ समयसमा 243 अन्वयः-तुषार निःशेषितम् अब्जसर्गम् पुनः बिधातुकामस्य विधातु:अधुना इह पञ्चसु आस्याङ्ग्रिकरेषु अभिख्या-भिक्षा माधुकरी-सदृक्षा ( अस्ति ) / टीका-तुषारेण हिमेन निःशेषितम् समापितम् विनाशितमिति यावत् (तृ० तत्पु० ) अब्जानाम् जलजानाम् सर्गम् सृष्टिम् (10 तत्पु० ) पुनः मुहुः विधातुं कर्तुं काम: इच्छा यस्य तथाभूतस्य (ब० वी०) विधातुः ब्रह्मणः अधुना इदानीम् इह दमयन्त्याम् पञ्चसु पञ्चसंख्यकेषु आस्यं मुखं च अन्री पादौ च करौ हस्ती चेति तेषु ( द्वन्द्व ) अभिख्यायाः शोभायाः सौन्दर्यस्य भिक्षा याचना (ष० तत्पु० ) ( 'अभिख्या नाम-शोभयोः' इत्यमरः) माधुकरी पञ्चसु विभिन्नगृहेषु याचिता भिक्षा तस्याः सदृक्षा सदृशी ( 10 तत्पु० ) अस्तीति शेषः / हिम? निखिल-कमलजातम् हिमेन विनाश्यते, ब्रह्मा च पुनः कमलानि स्रष्टुमिच्छति / तेषु सौन्दर्यमाधातुं स पञ्चस्थानेभ्यः सकाशात् भिक्षां याचमानो यतिरिव दमयन्त्याः पञ्चभ्यः आस्याघ्रि करेभ्योऽवयवेभ्यः सकाशात् सौन्दर्य भिक्षां याचते इवेति भावः // 104 // व्याकरण--निःशेषितम् निर्गतः शेषो यस्मादिति निःशेषम् (ब० वी० ) निःशेषं करोतीति निःशेष + क्तः ( कर्मणि ) नामधा० / अब्जम् इसके लिए पीछे श्लो० 102 देखिए। विधातुकामस्य 'तुम्-काममनसोरपि' से तुम् के म् का लोप / आस्याङनिकरेषु प्राण्यङ्ग होने से यहाँ समाहार द्वन्द्व में एकवद्भाव अर्थात् करे प्राप्त था, किन्तु 'पञ्चसु' शब्द द्वारा संख्या-परिगणन होने के कारण 'अधिकरणतावत्त्वे च' ( 2 / 4 / 15 ) से निषेध हो गया है / अभिख्या अभि + Vख्या + अ + टाप् / माधुकरी मधु करोतीति मधुकरः। मधुकराणामियमिति मधुकर + अण् + ङीप् / अनुवाद--पाले से निःशेष किये गये कमलों का फिर सृजन करना चाहते हुए ब्रह्मा का इस ( दमयन्ती ) के मुख, दो पैर और दो हाथ-इन पाँचों से सौन्दर्य की भीख मांगना ( यति द्वारा पाँच घरों से ) मधूकड़ी माँगने के समान है // 104 // टिप्पणी-शीतकाल में पाला कमलों को मार देता है, लेकिन बाद को वे वसन्त में फिर उग जाते हैं। इस पर कवि यह कल्पना कर रहा है कि कमलों के दोबारा सृजन हेतु ब्रह्मा दमयन्ती के मुख हाथ और पैरों से सुन्दरता की
SR No.032785
Book TitleNaishadhiya Charitam 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandev Pant
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year1979
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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