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________________ 210 वैषधीयचरिते गुच्छालयस्वच्छतमोदबिन्दवृन्दाभमुक्ताफलफेनिलाङ्के। माणिक्यहारस्य विदर्भसुभ्रपयोधरे रोहति रोहितश्रीः // 7 // अन्वयः-गुच्छा'लाङ्के विदर्भसुभ्रूपयोधरे माणिक्यहारस्य रोहितश्री: रोहति / टोका-गुच्छः हारविशेषः ('हारभेदा यष्टिभेदाद् गुच्छ-गुच्छार्ध-गोस्तनाः' इत्यमरः) आलय आश्रयः ( कर्मधा० / येषां तथाभूतानि ( ब० वी० ) यानि अतिशयेन स्वच्छानि निर्मलतमानि च ( कर्मधा० ) उदकस्य जलस्य बिन्दवः तेषां वृन्दम् समूहः ( उभयत्र 10 तत्पु० ) तद्वत् आभा कान्तिः ( उपमित तत्पु० ) येषां तथाभूतानि (ब० वी० ) च यानि मुक्ताफलानि मौक्तिकानि ( कर्मधा० ) तै: फेनिलः फेनयुक्त ( इव उज्वल: ) ( तृ० तत्पु० ) अङ्कः मध्यः ( कर्मधा० ) यस्य तथाभूते ( ब० वी० ) विदर्भाणाम् विदर्भजनपदस्य सुभ्रूः सु = शोभने भ्रुवौ यस्याः तथाभूता ( प्रादि ब० वी० ) सुन्दरी दमयन्ती ( 10 तत्पु० ) तस्याः पयोधरे कुचे अथ च मेघे माणिक्यानां मणीनाम् हारस्य मालाया (10 तत्पु० ) रोहिता लोहिता रक्तवर्णेति यावत् अथ रोहितस्य उक्तस्येन्द्रधनुषः श्री कान्तिः ( कर्मधा० ) ( 'रोहितो लोहितो रक्तः' इत्यमरः ) रोहति प्रादुभवति / मौक्तिकमालयाः शुभच्छटया रत्नमालायाश्च रक्तच्छटया दमयन्त्याः पयोधरौ दीप्येते इति भावः // 76 // व्याकरण-स्वच्छतम स्वच्छ + तमप् ( अतिशयार्थ ) उद समास में उदक शब्द को उदादेश हो रखा है / फेनिल फेनोऽस्यास्तीति फेन + इलच् (मतुबर्थ ) / पोधरः धरतीति धृ + अच् ( कर्तरि ) धरः पयसः धरः इति ( 10 तत्पु० ) / अनुवाद-हार पर लगे अतिशुभ्र, जल-विन्दु-समह की-सी कान्ति वाले मोतियों के फेन से भरे ( जैसे ) मध्य भाग वाले विदर्भ-सुन्दरी के कुचों पर रत्नहार की लाल छटा पड़ रही है ( जैसे मेघ में इन्द्रधनुष की रंगविरंगी छटा पड़ा करती है ) // 76 // टिप्पणी-दमयन्ती ने एक हार मोतियों का और दूसरा रत्नों का पहन रखा है। जिनकी मिली-जुली श्वेत और लाल छटा उसके कुचों के मध्य भाग पर पड़ रही है, जिससे वे उजागर हो रहे हैं। यहाँ कवि ने पयोधर और रोहित शब्दों में श्लेष रखा हुआ है, जिनका दूसरा अर्थ क्रमशः मेघ और इन्द्र
SR No.032785
Book TitleNaishadhiya Charitam 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandev Pant
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year1979
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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