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________________ सप्तमः सर्गः 21 धनुष भी होता है ('स्त्रीस्तनाब्दी पयोधरौ'। इन्द्रायुधं शक्रधनुस्तदेव ऋजु रोहितम' इत्यमरः)। कवि को इन शब्दों से मेघ में रंगविरंगा इन्द्र-धनुष बताना भी अभिप्रेत है, लेकिन यह अर्थ प्रकृत से कोई सम्बन्ध नहीं रखता है, इसलिए प्रकृत के साथ इसका उपमानोपमेयभाव सम्बन्ध स्थापित करके हमारे विचार से यह शब्दशक्त्युद्भव उपमाध्वनि ही है अर्थात् जिस प्रकार मेघ में इन्द्रधनुष की रंगबिरंगी छटा पड़ी रहती है, उसी तरह दमयन्ती के कुचों पर हार भी अपनी रंगबिरंगी छटा डाले हुए हैं / विद्याधर के अनुसार उत्प्रेक्षा और श्लेष अलंकार है। उत्प्रेक्षा ‘फेनिल इव' में ही हो सकती है / श्लेष हम ऊपर स्पष्ट कर चुके हैं, 'उदबिन्दुवृन्दाभ' में उपमा है। मणिहारों की प्रभा से कुचों के रंगविरंगे होने में तद्गुण भी है। शब्दालंकारों में रोहति' 'रोहित' में छेक, अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास है। निःशङ्कसंकोचितपङ्कजोऽयमस्यामुदीतो मुखमिन्दुबिम्बः / चित्रं तथापि स्तनकोकयुग्मं न स्तोकमप्यञ्चति विप्रयोगम् // 77 // अन्वयः-निःशङ्कसंकोचितपङ्कजः अयम् मुखम् इन्दु-बिम्बः अस्याम् उदीतः, तथा अपि स्तनकोकयुग्मम् स्तोकम् अपि विप्रयोगम् न अञ्चति ( इति ) चित्रम् / टीका-निः निर्गता शङ्का यस्मिन् कर्मणि यथा स्यात्तथा ( प्रादि ब० वी० ) संकोचितानि संकोचं प्रापितानि निमीलितानीति यावत् अथ च पराजितानि पङ्कजानि कमलानि ( कर्मधा० ) येन तथाभूतः ( ब० वी० ) अयम् एष पुरो दृश्यमानः मुखम् आननम् एव इन्दोः चन्द्रमसः बिम्बः मण्डलम् अस्याम् अग्रे स्थितायाम् दमयन्त्याम् उदीतः उदितः अस्तीति शेषः तथापि चन्द्र उदिते सत्यपि स्तनौ अस्याः कुचौ एव कोको चक्रवाको ( कर्मधा० ) तयोः युग्मम् युगलम् ( 10 तत्पु० ) स्तोकम् ईषत् यथा स्यात्तथा अपि विप्रयोगम् वियोगम् न अञ्चति प्राप्नोति / चन्द्रोदये चक्रवाकयुगलेन वियुक्तेन भाव्यमासीत् किन्त्वत्र कुचरूपचक्रवाकौ परस्परात् न वियुज्येते अपि तु परस्परं संयुक्ताभ्यामेव स्थीयते इति चित्रम् आश्चर्यम् इति भावः // 77 // व्याकरण-संकोचित सम् + कुच् + णिच् + क्त ( कर्मणि ) / पङ्कजम् पङ्कात् जायते इति पङ्क/जन् + ड। उदीत: उत् + Vई + क्त - ( कर्तरि ) / युग्मम् / युज् + मक् , कुत्ब / विप्रयोगः वि + प्र + /युज् + घन् /
SR No.032785
Book TitleNaishadhiya Charitam 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandev Pant
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year1979
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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