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________________ 20. नैषधीयचरिते बाहू प्रियाया जयतां मृणालं द्वन्द्वे जयो नाम न विस्मयोऽस्मिन् / उच्चैस्तु तच्चित्रममुष्य भग्नस्यालोक्यते निर्व्यथनं यदन्तः / 68 // ___ अन्वयः-प्रियायाः बाहू मृणालम् जयताम्; द्वन्द्वे जयः नाम; अस्मिन् विस्मयः न; तत् तु उच्चैः चित्रम् यत् भग्नस्य अमुष्य अन्तः निर्व्यथनम् आलोक्यते / टोका-प्रियायाः प्रेयस्याः दमयन्त्याः बाहू भुजौ मृणालम् विसम् जयताम् पराभवताम् द्वन्द्व युद्ध अथ च युगले ( 'इन्दु कलह-युग्मयोः' इत्यमरः ) जयः पराजयः नाम निश्चितः, द्वाभ्याम् एकः पराजीयते एव अस्मिन् अत्र विषये विस्मयः आश्चर्य न अस्तीति शेषः, तु किन्तु तत् उच्चैः अत्यन्तम् चित्रम् अद्भुतम्, आश्चर्यकरमिति यावत् यत् भग्नस्य पराजितस्य अमुष्य मृणालस्य अन्तः अन्तःकरणम् निर्गतं व्यथनादिति नियंथनम् ( प्रादि तत्पु० ) व्यथारहितम् अथ च भग्नस्य वोटितस्य अन्तः गर्भ निर्व्यथनम् छिद्रम् आलोक्यते दृश्यते / पराजितः कोऽपि जनो हृदये व्यथते परमस्य नास्ति व्यथा अथ च भग्नस्यामुष्यमध्ये छिद्रमस्ति ( 'छिद्र निय॑थनम्' इत्यमरः ) // 68 // व्याकरण-प्रिया प्रीणाति ( प्रसन्नीकरोति ) इति /प्री + क: + टाप् / द्वन्द्वम् द्वौ इति द्वि, द्वित्व, पूर्वपद को अम्भाव, उत्तरपद को नपुंसकत्व निपातित / जयः /जि + अच् ( भावे ) / विस्मयः वि + /स्मि + अच् ( भावे ) / भग्न भङ्ग् + क्त, त को न / . अनुवाद-प्रिया ( दमयन्ती) की भुजायें मृणाल को जीतें; युद्ध में दो के द्वारा ( एक की) हार निश्चित ही है। इस पर आश्चर्य नहीं, किन्तु अत्यधिक आश्चर्य तो यह है कि हार खाये, टूटे हुए इस ( मृणाल ) के हृदय में व्यथा नहीं और छेद देखने में आ रहे हैं / / 68 // टिप्पणी-इस और अगले श्लोक में कवि दमयन्ती की भुजाओं का वर्णन कर रहा है। सौन्दर्य के संघर्ष में उन्होंने बेचारे मृणाल का कचूमर निकाल दिया। ये ठहरे दो, वह वेचारा रहा एक / इसमें आश्चर्य कोई नहीं। आश्चर्य तो यह है कि हार खाकर भी हृदय में निर्व्यथन है। व्यथा का अभाव है। मल्लिनाथ यहाँ विरोधाभास कह रहे हैं। हार खाई हो और हृदय में व्यथा न हो-यह विरुद्ध बातें हैं। इस विरोध का परिहार 'हृदय में अर्थात् भीतर
SR No.032785
Book TitleNaishadhiya Charitam 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandev Pant
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year1979
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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