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________________ द्वितीयसर्गः बन जाता है अतः 'स्त्रियां संज्ञायाम्' ( 5 / 4 / 143 ) से यहाँ दतृ आदेश होने में कोई अनुपपत्ति नहीं। महिला ग्रह+लच् (मतुवोंय, तुन्दिलादिवत् ) / निशा–'पदन्नः' (6 / 163 ) से निशा को निश् आदेश / वापिका वापो एवेति बापो+कन् ( स्वाथें ) इत्वम् / / अनुवाद-जिस ( नगरी ) में सुन्दरियों के स्नान करने से ( देह पर से ) धुले कुंकुम दारा मध्य माग में कषायित ( मटमैली ) हुई बावड़ो सुन्दरियों ( सपत्नियों ) के साथ चिपटने से (पति की देह पर ) संक्रमित कुंकुम से हृदय में कषायित (ईष्यापूर्ण) हुई हठीली, मानिनी नायिका की तरह सारो रात अप्रसन्न ( मटमैली; कुपित ) रहती थी // 77 // टिप्पणो-यहाँ कुंकुम-कषायित बापिका की तुलना कुंकुम-कषायित मानिनी से की गई है, अतः उपमा है, वह मी श्लेषानुपापित / इतना सारा कुंकुम मला कहाँ हो सकता है, जिससे सारी बावड़ो पीली हुई पड़ी रहे। यहाँ वर्णन में अतिशयता आ जाने से उदात्तालंकार भो है। शम्दालंकारों में जन' 'जना' में छेक और अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास है। क्षणनीरवया यया निशि श्रितवप्रावलियोगपट्ट्या / मणिवेश्ममयं सुनिर्मलं किमपि ज्योतिरबाह्यमिज्यते // 4 // अन्वयः-निशि क्षण-नोरवया श्रित पट्टया यया मषिवेश्ममयम् निर्मलम् अवाश्यम् किम् अपि ज्योतिः ईक्ष्यते स्म // 78 // टोका-निशि रात्रौ क्षयं क्षणपर्यन्तं नोरवया निर्गतो रवः कलकलो यस्याः तथाभूतया (ब० वी०) निश्शब्दयेत्यर्थः अथ च तूष्पीभतया श्रित आश्रितः वप्रस्य प्राकारस्य आवलिः पक्तिः (10 तरपु०) योगस्य चित्तवृति-निरोधस्य पट्टः वस्त्रम् (10 तत्पु०) व ( उपमित तत्पु०) यया तयाभूतया (ब० नो०) [ योगिनो-पक्षे वप्रावलिबत् योगपट्टः ( उपमान तत्पु०)] यया नगर्या मणोना रत्नानां वेश्मानि गृहाणि एवेति मणिवेश्ममयम् ( स्वरूपाथें मयट ) निर्मलम् उज्ज्वलम् अबाह्यम् अन्तर्वति किमपि अनिर्वचनीयं वाङ्मनस्यतीतमिति यावत् ज्योतिस्तेजः ईक्ष्यते स्म साक्षाक्रियते स्म / अयं मावः यथा काचिद् योगिनी रात्री क्षयं तूष्णीं भवा बद्धयोगपट्टा सतो हृदयाभ्यन्तरे वाङ्मनसोरविषयम् आत्माख्यं ज्योतिः साक्षात्करोति, तथैव कुण्डननगर्यपि रात्री क्षणं विरत-लोककळकला प्राकारावेष्टिता मणिमयमवनानाम् अनिर्वचनीयं मणिज्योति: पश्यति स्म // 78 // - व्याकरण-बाह्यम् बहिर्भवम् इति बहिर्+ध्यञ् टिलोपः / ज्योतिः धोतते इति युत+सन् दस्य जत्वम् / अनुवाद-रात में क्षणभर निःशब्द ( शान्त ), एवं योगपट्ट-जैसी परकोटे की पंक्ति धारण किये जा (नगरी ) मणिभवनमय , उज्ज्वल, किसी ( अनिर्ववनोय ) भीतरी ज्योति का साक्षात्कार करती रहती थी // 78 // _ टिप्पणो-योगपट्ट-यह योगियों का एक ऐसा वस्त्र होता है, जिसे वे ध्यान लगाते समय पीठ और घुटने को करने हेतु काम में जाते हैं। यहाँ जड़ नगरो का माननीकरण कर रखा है, निससे ऐसा प्रतीत होता है कि वह रात का योगिनो को तरह क्षयमर शान्त रहकर मोतरी।
SR No.032784
Book TitleNaishadhiya Charitam 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandev Pant
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year
Total Pages402
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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