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________________ 84 नैषधीयचरिते नमसः कलमरूपासितं जलदै रितरक्षुणं नगम् / स ददर्श पतङ्गपुंगवो विटपच्छमातरक्षुपनगम् // 17 // अन्वयः-स पतङ्ग-पुंगवः नमसः कलभैः जलदैः उपासितम् , भूरितरक्षपम् , विटप.. गम् नगम् ददर्श। ___टोका-स पतङ्गेषु पक्षिषु पुंगवः श्रेष्ठ इत्यर्थः ( स्युरुत्तरपदे व्याघ्र-गव-वर्षम-कुआराः। सिंह. शार्दूल-नागाबाः पुंसि श्रेष्ठार्थ-वाचकाः' इत्यमरः) ( स० तत्पु०) नभसः आकाशस्य कलभः करिशावकैः करिशावकरूपैरित्यर्थः / 'कलमः करिशावकः' इत्यमरः ) जलदैः मेघैः उपासितं सेवितं व्याप्तमित्यर्थः अतिशयेन मूरयः अतिमूरयः (प्रादि तत्पु० ) अतिभूर यश्च ते क्षुपाः ह्रस्वशाखा-शिफ-वृक्षाः ('ह्रस्वशाखाशिफः क्षुपः' इत्यमरः ) ( कर्मधा० ) यस्मिन् तथाभूतम् ( ब० वी० ) विटपैः शाखामिः छन्नाः तिरोहिताः (तृ० तत्पु० ) तरक्षवो मृगादनाश्च पन्नगाः सर्पाश्चेति (द्वन्द्व ) यस्मिन् तथाभूतम् (ब० वी०) ('तरक्षुस्तु मृगादनः' इत्यमरः ) नगं पर्वतं ददर्श दृष्टवान् // 67 / / - व्याकरण-पतङ्गः पतन् उत्प्लवन् गच्छतोति पतन् + गम् +डः (कर्तरि ] / पुनवःपुमान गौः हन्ति पुंस्+गौ+समासान्तः टच / उपासित उप+आस्+क्तः ( कर्मणि ) / छन्नVछद्+क्तः ( वा दान्त-शान्त० ( 2 / 2 / 27 ) से निपातित वैकल्पिक रूप ) पन्नगः पन्नं पद्+ क्तः पतितं यथा स्यात् तथा गच्छतोति पन्न+ गम् +डः / नगः न गच्छतीति न+ गम् +डः। अनुवाद-उस श्रेष्ठ पक्षी ( हंस ) ने आकाश के करि-शावकों-मेघों-से व्याप्त, बहुतसारे साड़-झंकाड़ों तथा शाखाओं से छिपे लक्कड़बग्घों और साँपों वाला पर्वत देखा / / 67 // टिप्पणी-यहाँ कलम-दर्शन मांगलिक है / तरक्षु और सौंप देखना अमंगल होता है, अतः उन्हें छिपा दिया है, दिखाया नहीं / पहिलनाय ने 'पतङ्ग-पुंगवः' में 'पतङ्गः पुंगव इव' उपमित समास मानकर यहाँ उपमा मानी है, किन्तु हमारे विचार से पुंगव शब्द का व्युत्पत्ति-लभ्य अर्थ लेकर उसे उपमान-परक मानना ठीक नहीं, क्योंकि 'रूढियोगाद् बलोयसी' इस नियम की अनुसार पुंगव शब्द 'कुशल' 'प्रवीण' आदि शब्दों की तरह सीधा श्रेष्ठ अर्थ में रूढ़ हो रहा है, इसलिए यहाँ लक्षणा करके सादृश्य परक अर्थ लेना सर्वथा अनुचित है। ऊपर टीका में दिये गर अमरकोष-'पुंसि श्रेष्ठार्थ-वाचकाः' में भी 'पुंगब' को 'वाचक' ही कहा गया है 'लक्षक' नहीं। विद्याधर नमसः कलभैः में अतिशयोक्ति बना रहे हैं। वह तो विषय ( उपमेय ) के निगरण में होती हैं जब कि विषय जलद यहाँ अनिगोर्ण-स्वरूप है। इसलिए हम यहां रूपक ही मानेंगे। 'तरक्षुप नगम्' 'तरक्षुपन्नगम्' में यमक और अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास है। स ययौ धुतपक्षतिः क्षणं क्षणमूर्ध्वायनदुर्विमावनः / विततीकृतनिश्चनच्छदः क्षणमालोककदत्तकौतुकः // 68 // अन्वयः-स क्षणम् धुत-पक्षतिः, क्षणम् ऊर्चायन-दुर्विभावनः, (क्षणम् ) वितती...च्छदः, क्षणम् आलोकक-दत्त-कौतुकः सन् ययौ / टीका-स हंसः क्षयं त्रिंशत्कलात्मकं कालम् धुता प्रकम्पिता पक्षतिः पशमूलम् ( कर्मधा० )
SR No.032784
Book TitleNaishadhiya Charitam 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandev Pant
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year
Total Pages402
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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