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________________ पञ्चमसगः या मकाननुपमृद्य व मादक तां निरीक्षितुमपि क्षमते कः / रक्षिलक्षजयचण्डचरित्र पुंसि विश्वसिति कुत्र कुमारो // 11 // अन्वयः-च माह कः यामिकान् अनुपमृद्य ताम् निरीक्षितुम् अपि क्षमते ? रक्षिाने पुंसि कुमारी कुत्र विश्वसिति ? टीका-(किं) च- अपि च माहक मत्तल्यः कः पुरुषः यामिकान् प्रहरिष: अनुपम्य अनिष्पिध्य अमारयित्वेति यावत् ताम् दमयन्तीम् निरीक्षितुम् द्रष्टुम् अपि क्षमते शक्नोति ? न कोऽपीति काकुः / रक्षिणाम् पहरे स्थिनानां मंटानां लक्षम् लक्षात्पकसंख्या तम्य जयेन परामवेन ( उमयत्र 10 तत्पु० ) चण्डं करं चरित्रं म्वमावः कर्मेति यावत् ( कर्मधा० ) यम्य तथामृते (ब० ब्रो० ) पुंसि पुरुष कुमारी सुकुमारहृदया बाला कुत्र का विश्वसिति श्रद्दधाति ? न कुत्रापोनि काकुः। ईदृशं चण्डचरित्र मामवलोक्य कोमल हृदया कुमारी दमयन्ती पलायिष्यते, अत: मे मद्दूत्यमनुचितमेवेति मावः // 110 // ग्याकरण-माह अहमिवेति अम्मत् +/दृश+विप् अस्मत् को मदादेश, भकार को आत्व। यामिकान् यामम् ( प्रहरम् ) रक्षन्तीति याम +ठन् अथवा यामे भवन्तीति, याम+ठम् ठ को क। ___ अनुवाद-अपि च, मेरा-नेसा कौन ( व्यक्ति ) पहरेदारों को रौंदे बिना उस ( दमयन्ती ) को देव मो सकता है ? लाख सुरक्षा-सैनिकों को परास्त कर देने का कर कम करने वाले पुरुष पर लड़की कहाँ विश्वास करती है ? // 110 // टिप्पणी-नल अपने में दूत बनने को अयोग्यता का यह मो कारण बताता है कि कन्यान्तःपुर की सुरक्षा-सेना के सिपाही कैसे मुझे मोतर जाने दे सकेंगे। यदि अपना शौर्य दिखाकर उन्हें समाप्त करके बलात घुस जाऊँगा, तो मुझ क्रूर-निर्दयी पर सुकुमार कुमारी क्योंकर विश्वास करेगी ? इस तरह दौत्य की अयोग्यता का कारण बताने से काव्यलिङ्ग / 'निरीक्षितुमपि' में अपि शब्द से उसके साथ बातचीत कर सकने का प्रश्न तो दूर रहा' इस अर्थ के आ पड़ने से अर्थापत्ति मी है / रीक्षि' 'इक्षि' में छेक और अन्यत्र वृत्त्यनुपास है। कुमारी-यहाँ चाण्डू पण्डित ने अमङ्गलवाचक-रूर अश्लीलत्व दोष की शका उठाई है, क्योंकि कुमारी शब्द का अंशभून 'मारों शब्द मार देने वाली अथवा ( हिन्दी में ) मरी अर्थ का बोधक होता है और साथ ही दोष का समाधान भी उन्होंने कर दिया है कि नहीं. 'अभिप्रेतमित्यादिवत् दोषस्य लोकेन संवीतत्वात्' अर्थात् जिस प्रकार 'अभिप्रेत' शब्द के अशभून 'प्रेत' शब्द में अमांगलिकता होते हुए मो लोक-प्रयोग से वह संवीतः ढकी रह जाती है उप्तका पता नहीं चलता, उसी तरह कुमारी शब्द को भी समझिए / इसीलिए वामनाचार्य ने भी अपने 'काव्यालंकार' में यह बात स्पष्ट कर रखी है-अप्रसिद्ध लाक्षणिक लोकसंवीतासभ्यपद नाश्लीलम्। आदधीचि किल दातृकृताघ प्राणमात्रपणसीम यशो यत् / आददे कथमहं प्रियया तत्, प्राणतः शनगुणेन पणेन // 11 //
SR No.032784
Book TitleNaishadhiya Charitam 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandev Pant
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year
Total Pages402
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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