SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 325
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पञ्चमसर्गः अनुवाद-इसके बाद कामदेव ने इन्द्र के कर के लिए वज्र (पकड़े ) रहने के कारण कमी से इकट्ठे हुए घावों की उचित दवाई दमयन्ती का शीतल और कोमल कर ग्रहण ( ही ) बताई / / 45 / / टिप्पणी-नारद से दमयन्ती की अलौकिक सुन्दरता और उसे प्राप्त करने हेतु भूलोक के राजा लोगों में प्रतिस्पर्धा का समाचार सुनते ही इन्द्र के हृदय में भी काम भड़क उठा। वह भी उसका प्रत्याशो बन गया, यहाँ दमयन्ती-राणि-ग्रहण पर ताप-निवारक ओषधित्व का आरोप होने से रूपक है। ताप पर शीतल ओषधि बताना ठीक ही है। किन्तु कवि यदि इन्द्र के 'पापि' के लिये यहाँ दमयन्ती का 'पाणि' लिखता, तो अधिक स्वारस्य बैठता भले ही 'कर' पाणि का ही पर्याय है शम्दालंकार वृत्त्यनुप्रास है। नाकलोकमिषजोः सुषमा या पुष्पचापमपि चुम्बति सैव / वेनि तादृगमिषज्यदसौ तद्द्वारसंक्रमितवैद्यकविद्यः // 46 // अन्वय-नाकलोक-भिषजो: या सुषमा (अस्ति), सा एवं पुष्पचापम् अपि चुम्बति; असौ तद्द्वार.. विद्यः तादृक् ( सन् ) अभिषज्यत् ( इति ) वेद्मि / ____टीका-नाकलोकस्य स्वर्गलोकस्य मिजोः वैद्ययोः ( भिषग्-वैद्यौ चिकित्सको' इत्यमरः) (10 तत्पु० ) या सुषमा शोमा सौन्दर्यमित्यर्थः अस्ति सा एवं सुषमा पुष्पं चापो धनुर्यस्थ तथाभूनम् ( ब० बी० ) कामदेवमित्यर्थः अपि चुम्बति स्पृशति, तयोरेव सौन्दर्य कामदेवे आगतमिति मावः / ( अतएव ) असौ कामः सा सुषमा एव द्वारम् करणम् ( कर्मधा० ) तेन संक्रमिता स्थानान्तरिता (त० तत्पु० ) वैद्यकविद्या ( कर्मधा० ) वैद्यकस्य वैद्यस्वस्य विद्या विज्ञानम् ( 10 तत्प० ) यस्मिन् तथाभूतः ( ब० नो०) सन् तारक स्ववैद्यप्तदृशः अमिषज्यत् चिकित्सां चकार इत्यहं वेझ जाने / सुषमा-संक्रमण-द्वारा कामे स्ववद्ययोः वैद्यकविद्यापि संक्रमिता, तस्मात् कामोऽपि वैद्यः सन् इन्द्रपाणिचिकिस्तामुपदिदेशेति भावः // 46 // व्याकरण-नाकलोक इसके लिए पीछे श्लोक 8 देखिए / संक्रमित सम्/कम् + णिच् + क्तः ( मित्वात् हस्वः ) अथवा संक्रमः सजातोऽस्येति संक्रम+इतन् / वैद्यकम् विद्या. वेत्ति जानातीति विद्या+अण्ण वैद्यः वैद्यस्य भावः कर्म वेति वैद्य+वुन , बु को अक। भमिषिज्यत्-- भिषज (रोगापनयने)+यक + लङ (कण्डवादिः)। यहाँ उत्तरार्ध-वाक्य वेनि क्रिया का विशेष्यात्मक उपवाक्य ( Noun clause ) रूप में कर्म बना हुआ है। भनुवाद-स्वर्ग के वैद्यों (अश्विनीकुमारों) की जो सुषमा है, वही कामदेव को भी छू रही है। ( तभी तो ) उस ( सुषमा ) के द्वारा ( अपने भीतर ) स्थानान्तरित हुई वैद्यक-विद्या वाले कामदेव ने उन ( स्वर्गवैद्यों ) की तरह चिकित्सा की, ऐसा मैं मानता हूँ।।। 46 / / टिप्पणी-सौन्दर्य में कामदेव अश्विनीकुमारों की तरह ही था। कवि के कथनानुसार अश्विनीकुमारों की सुषमा स्वर्ग में साथ 2 रहने के कारण कामदेव को छू बैठी। फिर तो सुषमा के साथ उनकी वैद्यक-विद्या मी कामदेव में आ गई और वह मी जो पहले वैद्य नहीं था, वैद्य बनकर इन्द्र के हाथ के घावों को चिकित्सा करने लगा। वैसे तो बीमारियाँ ही कुछ ऐसो होती हैं, जो छूत
SR No.032784
Book TitleNaishadhiya Charitam 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandev Pant
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year
Total Pages402
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy