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________________ 284 नैषधीयचरिते अनुवाद-इसके बाद पिता ( मीम ) ने नीचे सिर किए हुए पुत्री ( दमयन्ती ) का शीघ्र (उसका ) सिर ऊपर उठाकर आशीर्वाद दिया--"(हे पुत्री, ) कुछ ही दिनों में तुम स्वयंवर में अपना अभिलषित, गुणी वर प्राप्त करो" // 116 // टिप्पणी-पिता द्वारा पुत्री को आशीर्वाद दिए जाने से विद्याधर के शब्दों में 'अत्राशोरलङ्कारः' / शब्दाल कार वृत्त्यनुप्रास / छन्द पूर्ववत् पुष्पिताना ही है तदनु स तनुजासखीरवादीत्तुहिनऋतौ गत एव हीदृशीनाम् / कुसुमपि शरायते शरीरे तदुचितयाचरतोपचारमस्याम् // 120 / / अन्वय-तदनुस तनुजा-सखीः अवादीत् "(हे सख्यः / ) तुहिन ऋतौ गते एव हि ईदृशोनाम् शरीरे कुसुमम् अपि (लग्नं सत् ) शरायते, तत् उचितम् उपचारम् आचरत / टीका-तत् अनु तत्पश्चात् स राजा मोमः तनुजायाः पुत्र्याः सखीः आलीः अवादीत् अकथयत्-(हे सख्यः ! ) तुहिनः शिशिरश्चासो ऋतुः तस्मिन् गते एव समाप्ते एव वसन्तारम्मे इत्यर्थः हि यतः ईदशीनाम् दमयन्तीसदृशीनां प्राप्ततारुण्यानां कोमलाङ्गीनाम् इत्यर्थः शरीरे अङ्गे लग्नमिति शेषः कुसुमम् पुष्पम् अपि शरायते बाणायते पीडां जनयतीत्यर्थः एकत्र कोमलाङ्गवात् अन्यत्र कामवापस्वात, दमयन्त्याः तत् तस्मात्कारणात् अस्याः दमयन्त्याः उचितम् योग्यम् उप. चारम् प्रतीकारोपायम् प्राचरत कुरुत / वसन्त-समये पुष्पोद्गमे युवतीनां कामोद्रेकात् पीडा भवतोति ता उपचारमहन्तीति भावः // 120 // व्याकरण-तदनु अनु के योग में तत् को द्वितीया। तनुजा-तन्वाः जायते इति तनु+ जन् +ड:+ टाप् ( स्त्रियाम् ) / तुहिन-ऋतौ-'ऋत्यकः' (6 / 1 / 128) से विकल्प से प्रकृतिभाव, अन्यथा तुहिनौं। ईशानाम्-इयम् दृश्यन्ते यास्तासामिति इदम् +1 दृश्+कञ् ( कर्मणि )+ ङीप् ( स्त्रियाम् ) / शरायते-शर इवाचरतीति शर+ क्य+लट (नामधातु)। अनुवाद-तत्पश्चात् वह ( राजा ) पुत्री की सखियों को बोला-( सखियो!) शिशिर ऋतु के बीतते ही क्योंकि ऐसी-जेंसियों ( कोमलाङ्गियो तथा नवयुवतियों ) के शरीर पर फूल भी वाप्पका-सा काम करता है, इसलिए इस ( दमयन्ती) का उचित उपचार करती रहो // 120 // टिप्पणी-काम का मित्र वसन्त आया कि कामिनियों पर विशेषतः कोमलाङ्गियों एवं नवयुवतियों पर मुसीबत आई / पुष्पोद्भव से उनमें काम भड़क उठता है। पुष्प कामके बाण बन जाते हैं। यही कारण है कि राजा पुत्री को सखियों को सचेत कर देता है। 'शरायते' में उपमा है। 'कुसुममपि' में 'शरी' तथा 'चार' 'चर' में छेक और अन्यत्र वृत्त्यनुपास है। कतिपयदिवसैवयस्यया वः स्वयममिलष्य वरिष्यते वरीयान् / क्रशिमशमनयानया तदाप्तुं रुचिरुचिताथ भवद्विधाविधामिः' / / 121 // अन्वय-हे दमयन्ती-सख्यः।) वः बयस्यया कतिपयैः दिवसैः स्वयम् अभिलष्य वरीयान् वरिष्यते. तत् अथ अनया भवद्विधा विधाभिः कशिमशमनया रुचिः आप्तुम् उचिता / 1. मिधामिः।
SR No.032784
Book TitleNaishadhiya Charitam 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandev Pant
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year
Total Pages402
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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