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________________ 230 नैषधीयचरिते टिप्पणी-ज्योतिष के अनुसार कुछ ग्रह क्रूर और कुछ-सौम्य कहलाते हैं। चन्द्रमा यदि पूर्ण हो, तो सौम्य अथवा शुभ होता है और यदि क्षीण हो, तो अशुभ; इसके लिए देखिए:'क्षीपेन्द्रर्काकिंभूपुत्राः पापास्तत्संयुतो बुधः / पूर्णचन्द्रबुधाचार्यशुक्रास्ते स्युः शुभग्रहाः'। यह सब शास्त्रीय बात है, व्यावहारिक दृष्टि से विरही लोगों को पूछो कि यह कितनी विपरीत बात है / यहाँ शब्द प्रमाण प्रत्यक्ष प्रमाण के बिलकुल विरुद्ध चल रहा है। विद्याघर के अनुसार यहाँ अतिशयोक्ति है। शम्दालकारों में 'कथाः' 'कथम्' में छेक और अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास है। 'कुलं' 'कल' 'कलं' में एक से अधिक बार आवृत्ति होने से छेक न होकर वृत्यनुप्रास ही होगा। विरहिभिर्बहुमानमवापि यः स बहुलः खलु पक्ष इहाजमि / तदमितिः सकलैरपि यत्र तैय॑रचि सा च तिथिः किममा कृता // 63 // भन्वयः-बिरहिमिः यः पक्षः बहु मानम् अवापि, स-इह बहुल: अजनि खलु; यत्र तैः सकलं: अपि तदमितिः व्यरचि सा तिथि: च अमा कृता किम् ? टीका-विरहिणश्च विरहिण्यश्चेति विरहिणः तैः ( एकशेष स० ) यः पक्षः पञ्चदशाहोरात्राः बहु अधिकम् मानम् आदरम् अवापि प्रापितः, भृशमानित इत्यर्थः स पक्षः इह संसारे बहुल: कृष्णपक्षः प्रजनि जातः खलु मन्ये बहु मानं लाति गृहातीति व्युत्पत्तिमाश्रित्य कृष्णपक्षः बहुलपक्षः इत्युच्यते इत्यहं मन्ये इतिभावः यत्र बहुलपक्षस्य यस्यां तिथौ तैः सकलैः सर्वैः अपि विरहिमिः तस्य संमानस्य भमितिः अपारिमित्यम् व्यरचि कृता तिथि: च प्रमा न माः मानं ( संमानम् ) बस्यास्तथाविधा (नञ् ब० वी०) अपरिमितसत्कारयुक्तेत्यर्थः कृतः किम् ? कृष्णपक्षस्यान्तिमायाँ तिथौ ( अमावास्यायम् ) विरहिषाम् अपरिमित-संमानो भवतीत्येतस्मात् कारणादेव अमा इत्युच्यते इतिमन्ये इति मावः / / 63 / ___ व्याकरण-अवापि अव+/प्+पिच्+लुङ ( कर्मवाच्य ) / बहुल: वहुं ( संमानं ) छातीति बहु+Vला+क. (कर्तरि ) / प्रजनि जन्+लुङ् ( कर्तरि ) / मा /मा+किप (मावे ) सम्पदादित्वात् / / अनुवाद-विरही-विर हिषियों द्वारा जिस पक्ष ( पखवाड़े ) को बहुत संमान दिया गया, वह मानो संसार में बहुल ( पक्ष ) बना एवं जिस (तिथि ) के प्रति उन सभी विरही-विरहिषियों के संमान का परिमाण ही नहीं रहा, वह अमा बनी क्या ? // 63 / / टिप्पखी-यहाँ कवि निरुक्त के आधार पर बहुल और अमा शब्दों की और ही तरह की व्युत्पत्ति बता रहा है। वैसे तो 'बहुलोऽग्नौ शितो त्रिषु' इस अमर कोश के अनुसार बहुल का अर्थ शिति अर्थात् काला होता है, इस कारण ही काला पखवाड़ा बहुल कहलाता है। इसी तरह 'अमा सह समीपे च' के अनुसार अमा ( अव्यय ) शब्द द्वारा 'साथ' अर्थ बतायेजाने के कारण प्रमा अथवा अमावास्या उस तिथि को कहते हैं, जहाँ चन्द्रमा सूर्य के साथ रहता है, किन्तु दमयन्ती को कवि की यह दोनों व्युत्पत्तियों मान्य नहीं। उसकी कल्पना यह है कि बहुल इस लिए बहुल 9. अमीकृता।
SR No.032784
Book TitleNaishadhiya Charitam 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandev Pant
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year
Total Pages402
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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