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________________ 202 नैषधीयचरिते विचार, आँसू और सन्धि में अनल के 'अ' का पूर्वरूप करके नल। पहले अर्थ में विरोध होता है, दूसरा अर्थ करके विरोध-परिहार हो जाता है, इसलिए यहाँ विरोधाभाप्त अलंकार है जो श्लेषा. नुप्रापित है / लेकिन विद्याधर और चारित्रवर्धन यहाँ श्लेष और व्यतिरेक मानते हैं। व्यतिरेक इस रूप में हो सकता है कि न्याय सिद्धान्त से यहाँ यह अधिकता बताई गई है कि वहाँ बाप से अनुमान गलत पड़ता है, यहाँ सही / शब्दालंकार वृत्त्यनुपास है। हृदि विदर्भमुख प्रहरन् शरै रतिपतिर्निषघाधिपतेः कृते / / __ कृततदन्तरगस्वदृढव्यधः फलदनीतिरमूर्छदलं खलु // 19 // अन्वयः-निषिधाधिपतेः कृते विदर्भमुखम् शरैः हृदि प्रहरन् रति पतिः कृत-तदन्तरग-स्वदृढ-व्यधः खलु फलद-नीतिः अलम् अमूर्च्छत् / टीका-निषधानाम् अधिपतेः अधीश्वरस्य कृते अर्थे नलं लक्ष्यीकृत्येत्यर्थः विदर्भाः एतदाख्य-देशविशेषो भूः उत्पत्तिस्थानं यस्याः तथाभूताम् दमयन्तीमित्यर्थः ( ब० वो०) शरैः बाणः हृदि हृदये प्रहरन् आघातं कुर्वाणः रत्याः एतदाख्यायाः स्त्रियः पतिः भर्ता कामदेव इत्यर्थः (10 तत्पु०) कृतः विहितः तस्याः दमयन्त्याः अन्तरगः हृदयस्थितः (10 तत्पु०) अन्तरे अन्तरात्मनि, हृदये इत्यर्थः ('अन्तरं मध्येऽन्तरात्मनि' इत्यमरः ) गच्छतोति तथोक्तः ( उपपद तत्पु०) यः स्वः आत्मा ( कर्मधा० ) तस्य दृढव्यधः (10 तत्पु० ) हृढः प्रबलः, गम्भीरः ब्यधः वेधनम् प्रहार इति यावत् ( कर्मधा० ) येन तथाविधः ( ब० वी० ) सन् खलु इव फलन्ती फलं ददती अनीतिः अन्यायः ( कर्मधा० ) यस्य तथाविधः ( ब० वी०) अलम् अत्यन्तम् अमूच्छत् भूच्छा ( मोहं, वृद्धिं च ) प्राप / अयं मावः नलः कामश्च दमयन्त्या हृदि आस्ताम् / तत्र नलं प्रहरन् कामः तत्रस्थम् आत्मानमपि प्रहृतवान् प्रहृतश्च सन् स भृशं मुमूर्छ। अनीतिः नूनं फलत्येवेति. मावः // 16 / / व्याकरण-अन्तरगः अन्तर+ गम् +डः। व्यध:/व्यध् +अच् ( मावे ) फलदफलं ददातीति फल+ दा+कः।। अनुवाद-निषध-नरेश ( नल ) को लक्ष्य करके विदर्भ कुमारी (दमयन्ती ) पर हृदय में प्रहार करता हुआ कामदेव उसके अन्दर स्थित स्वयं को गम्भीर रूप से घायल किये-जैसे, ( अपनी) दुनोंति का फल पाये हुए पूर्णतः मूर्छा (बेहोशी, वृद्धि ) को प्राप्त हो बैठा // 19 // टिप्पणी-अपने अतुल सौन्दर्य द्वारा नल कामदेव को परास्त किये हुए था। इसी खार के कारण काम दमयन्ती के हृदय में घर जमाए निज शत्रु नल को लक्ष्य करके दमयन्ती पर बाण-प्रहार कर बैठा लेकिन मूर्खता के कारण वह अपने पर भी प्रहार कर गया, क्योंकि दमयन्ती के हृदय में नल के साथ वह भी तो स्वयं बैठा हुआ था। अपने ही प्रहार से गम्भीर रूप से घायल होकर वह भूछित हो गया। ठीक है। नल पर बदला उतारने के लिए बेवारी निरपराध दमयन्ती पर प्रहार करना कहाँ की नीति है। इसलिए वह अन्याय का फल पा गया। काम को मूर्छित देख कर ही कवि 1. व्य थ।
SR No.032784
Book TitleNaishadhiya Charitam 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandev Pant
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year
Total Pages402
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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