________________ नैषधीयचरिते . कि कोई विप्र संसार में सर्वोत्कृष्ट उस ( प्रसिद्ध ) पुरुषोत्तम ( विष्णु ) से मुक्ति ( मोक्ष, माक्षसाधन शान ) पाकर उस आनन्द को प्राप्त होता है, जो वाणो का भी विषय नहीं ) // 1 // __टिप्पणी-यहाँ प्रकरण-वश प्रस्तुत अर्थ नल-परक हाने पर जो दूसरा अमस्तुत अर्थ शब्द-शक्ति से प्रतीत हो रहा है, उसका प्रस्तुत के साथ संगति विठाने के लिए दोनों में उपमानोपमेयमाव सम्बन्ध की कल्पना करनी पड़ रही है, इसलिए यहाँ उपमा-ध्वनि है। साहित्यिक माषा में इसे हम वस्तु से अलंकार-ध्वनि कहेंगे, वह मो शब्दशक्त्युद्भव / किन्तु विद्याधर यहाँ श्लेषालंकार मानते हैं। 'गत्य' 'गत्य' में यमक और अन्यत्र अनुप्राप्त है। अधुनीत खगः स नैकधा तनुमुत्फुल्लतनूरुहीकृताम् / / करयन्त्रणदन्तुरान्तरे व्यलिखच्चञ्चपुटेन पक्षती // 2 // अन्वयः-स खगः उत्फुल्ल..ताम् तनुम् नैकवा अधुनीत, ( तथा) चम्च-पुटेन कर "न्तरे पक्षती व्यलिखत् / टीका-स खगः पक्षो हंस इत्यर्थः उत्फुल्लामि विकसितानि विस्तारितानीत्यर्थः तनूरुहाप्पि रोमाणि ( कर्मधा० ) यस्यां तथाभूता ( ब० वी०) अनुत्फुल्लतनूरुहा उत्फुल्लतनूरुहा कृतेति उत्फुल्ल'कृता ताम् तनुं शरीरं नैकधा नेकप्रकारम् अधुनोत प्रकम्पितवान् , तथा चच्चाः त्रोट्याः पुटेन संपुटेन (10 तत्पु० ) करेण नलस्य हस्तेन यन्नियन्त्रणं नियमनं पोडनमिति यावत् ( तृ. तत्पु० ) तेन दन्तुरे उन्नतावनते ( तृ० तत्पु० ) अन्तरे मध्यभागौ ( कर्मधा० ) ययोः तथाभूते (व० वी० ) पक्षती पक्षमूळे ('खी पझतिः पक्षमूलम्' इत्यमरः) व्यलिखत् विलेखनेन समीचकारेत्यर्थः / नृपकरपीडनेनाबनतं पञमूलं चञ्चद्वारा घर्षणेन हंस ऋजूक्तवानिति मायः // 2 // व्याकरण-खगः खे आकाशे गच्छनीति ख+ गम् +डः। तनूरुहाः तन्वा रोहन्नीति तनू+/रुह+कः। उत्फुल्ल उत्फुल्लतीति उत्फु ल्ल+अच ( कर्तर ) / नेकधा नअर्थस्व सुप्सुपेति समासः, नञ्-समासे नलोपप्रतङ्गात् / अधुनोत-धूञ्+लङ् 'प्रादीनां ह्रस्वः' इति हस्वः / इन्तुर-दन्ता उन्नता अस्येति दन्त+उरच् / पतिः 'पक्षात् तिः' इति पक्ष+तिः। अनु०-उस पक्षो ( हंस ) ने फैलाये हुए पंखों वाली अपनी देह तरह तरह से हिलाई; ( फिर ) चोंच से ( राजा के ) हाय द्वारा दब जाने के कारण ऊँचा-नीचा बने मध्य माग वाले डैनों की जड़ों को खुजलाया // 2 // टिप्पणी-यहाँ पक्षियों के स्वभाव का यथावत् वर्णन करने से स्वभावोक्ति अलंकार है। शब्दालंकारों में 'तनु' 'तनू' में तथा 'न्तुरान्तरे' में छेक और अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास है। अयमेकतमेन पक्षतेरधिमध्योर्ध्वगजङ्घमज्रिणा / स्खलनक्षण एव शिश्रिये द्रुतकण्यितमौलिरालयम् // 3 // अन्धयः-अयम् स्खलन-क्षणे एव पक्षतेः अधिमध्योर्ध्वगजलम् एकतमेन अङ्घिषा द्रुतकण्डूयितमौलिः सन् आलयम् शिभिये / टीका-अयम् एषः ( हंसः) स्खलनस्य राशः हस्तात् मोचनस्येत्यर्थः क्षणे समये ( प० तत्पु०)