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________________ नैषधीयचरिते अन्या ( 10 तत्पु०) सदृक् सदृशी (कर्मधा० ) गुणानां सौन्दर्यादीनां (10 तत्पु०) उदये सद्भावे यस्याः तथाभूताम् (ब० वी०) अर्थात् काल त्रयेऽपि लोकत्रयेऽपि च गुणेषु यस्याः सदृशी अन्यथा नास्ति तादृशीं तनयां पुत्रीं वरम् अभीप्सितम् श्राप प्राप्तवान् / / 17 / / व्याकरण-प्रसेदुषः प्र+/सद्+लिट् और उसके स्थान में क्वसु प्रत्यय / त्रितयम् त्रयोs. वयवा अत्रेति त्रि+तयप् / सहक सपाना दृश्यते इति समान+/दृश् +क्विन् , समान को 'स' आदेश। उदयः उत्+Vs+अच् ( मावे ) / अनुवाद-उस ( भीम भूपति ) ने अत्यधिक प्रसन्न हुए दमन-नामक सत्यवादी तपस्वी से तोनों ( भूत, मविष्यत् , वर्तमान ) कालों तया तीनों ( स्वर्ग, मर्त्य, पाताल ) लोकों में जिसके सदृश ( सौन्दर्यादि ) गुणोदय अन्य किसी स्त्री में नहीं-ऐसी कन्या वर-रूप में प्राप्त की है // 17 // टिप्पणी-यहाँ कन्या में सभी नारियों की अपेक्षा गुणों में अतिशय बताने से व्यतिरेकालंकार है। 'दमना' 'दमना' में यमक और अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास है। भुवनत्रयसुभ्र वामसौ दमयन्ती कमनीयतामदम् / उदियाय यतस्तनुश्रिया दमयन्तीति ततोऽमिधां दधौ // 18 // अन्वयः-यतः असौ तनु-श्रिया भुवन-त्रय सुभ्रुवाम् कमनीयता-मदं दमयन्ती उदियाय, ततः "दमयन्ती' इति अभिधां दधी। टीका-यतः यस्मात् कारणात् असौ ऋषिवरद्वारा प्राप्ता कन्या तन्वाः शरीरस्य श्रिया सुषमया भुवनानां लोकानां त्रयम् त्रितयम् स्वर्ग-मर्त्य-पातालानि तस्य सु शोमने भ्रवौ यासां तथाभूतानाम् (ब० वी०) सुन्दरीणामित्यर्थः कमनीयतायाः सौन्दर्यस्य मदम् अमिमानं दमयन्ती शमयन्ती भग्नं कुर्वतीति यावत् उदियाय उदितवती उत्पन्नेत्यर्थः, ततः तस्मात् कारणात् 'दमयन्ती' इति अभिधां संज्ञा दधौ धत्तवती // 18 // व्याकरण-दमयन्ती-/दम् + णिच् +शत+ङीप् / यहाँ आत्मनेपद अर्थात् 'दमयमाना' रूप होना चाहिए था, क्योंकि दिम् का ण्यन्त में ( 'न पाद०' 1 / 3 / 89 ) परस्मैपद का निषेध हो रहा है, किन्तु भट्टोजीदीक्षित के अनुसार 'अकञभिप्राये ‘शेषात्-( 1 / 3 / 78)' इति परस्मैपदं स्यादेव...'दमयन्ती कमनीयतापदम्' इति / उदियाय उत्+Vs+लिट् / अमिधा-अमि+V धा+ +टाप् / अनुवाद-क्योंकि वह ( कन्या ) शरीर को सुन्दरता के तीनों लोकों की सुन्दरियों के सौन्दर्याभिमान का दमन ( भंग ) करती हुई, उत्पन्न हुई इसीलिए उसने 'दमयन्ती' यह ( यथार्थ ) नाम रखा है // 18 // टिप्पणी-कन्या का नाम तो नामकरण संस्कार के समय रखा गया था, सुन्दरियों का सौन्दर्याभिमान-भंग उसके युवा होने पर किया, इसलिए यहाँ कल्पना हो की गई है कि मानों सौन्दर्यमददमन से दमयन्ती नाम पड़ा। उत्प्रेक्षा का वाचक न होने से वह गम्य है; शब्दालंकार बृत्यनुप्रास है।
SR No.032784
Book TitleNaishadhiya Charitam 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandev Pant
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year
Total Pages402
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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