________________ [ 4 ] पात्र बन जायँ / किन्तु श्रीहर्ष की प्राचीनता के उक्त तक में बल नहीं है। पहले तो प्रचलित पृथ्वीराज-रासो चन्दबरदाई द्वारा प्रणीत है यह प्रश्न ही अमो तक विवाद-ग्रस्त है, क्योंकि कई विद्वानों और ऐतिहासिकों ने कहा है पृथ्वीराज को मृत्यु के तत्काल बाद मुसलमानों ने चन्दबरदाई को मी मार दिया था। इसके अतिरिक्त रासो में मुसलमानी भाषा के बहुत सारे शब्द आये हुए हैं, जिनसे सिद्ध होता है कि वह मुस्लिमसाम्राज्य-स्थापना के बहुत समय बाद उनकी माषा के देश में प्रचलित हो जाने पर किसी अन्य ने बनाया है / दूसरे, यदि श्रीहर्ष इतने प्राचीन कलाकार होते, तो कालिदास के ग्रन्यों की तरह परवती साहित्यशास्त्री और आलंकारिक लोग इनके नैषध में से भी अपनी रचनाओं में उद्धरण देते। तीसरे राजशेखर के निम्नलिखित कथन के अनुसार तब तक तीन कालिदास हो चुके थे: 'एकोऽपि जीयते हन्त कालिदासो न केनचित् / शृङ्गारे ललितोद्गारे कालिदास-त्रयी किमु // हो सकता है कि श्रीहर्ष का परवती कोई अमिनव कालिदास चन्दबरदाई को अभीष्ट हो / एक कालिदास राजा भोज (11 वीं शती उत्तरार्द्ध) के समय में भी था, जिसने राजा भोज का वृत्तान्त लिखा है / रासो में मोज-प्रबन्ध का स्पष्ट उल्लेख है / __ इसके अतिरिक्त हम देखते हैं कि विद्याधर के बाद नैषध के दूसरे प्रसिद्ध टीकाकार अहमदाबाद के चाण्डू पंडित ने ( 1269 ई० में लिखी) अपनो टीका में 22 वें सर्ग को समाप्ति पर नैषध को नया काव्य कहा है२ / स्वयं श्रीहर्ष भी अपने श्रीमुख से अपने काव्य को 'कविकुलारष्टाचपान्थे' अर्थात् नया ही कह गये हैं / इससे नैषधकाव्य और उसके प्रणेता को प्राचीनता का निराकरण हो जाता है। वैसे विद्वन्मण्डली में भी श्रीहर्ष का नैषधीय-चरित भारवि द्वारा काव्य क्षेत्र में प्रचलित अलंकृत शैली का अन्तिम श्रेष्ठतम काव्य माना जाता है / इसलिये राजशेखर के 'श्रीहर्षः कान्यकुब्जाधिपतिजयचन्द्रस्य सभासन्महाकविरासोत्' इस कथन के अनुसार श्रीहर्ष का स्थिति काल बारहवीं शती ई० का उत्तरार्ध मानने में हमें कोई हिचकिचाहट नहीं होनी चाहिये। श्रीहर्ष का व्यक्तिगत जीवन-श्रीहर्ष द्वारा दिये गये आत्म-परिचय के अतिरिक्त राजशेखर ने अपने 'प्रबन्धकोश' में इनके व्यक्तिगत जीवन के सम्बन्ध में पर्याप्त जानकारी दे रखी है। उसके अनुसार श्रीहर्ष जब बालक ही थे, तो एक वार इनके पिता हीर को एक विद्वान ने राजा के सामने शास्त्रार्थ में परास्त कर दिया। परास्त करने वाला विद्वान् न्यायशास्त्र का अगाध पण्डित उदयनाचार्य था। 1. कियो कालिका मुख्ख वासं सुसुद्ध। जिन सेतबंध्योति भोजप्रबन्धं // 2. बुद्ध्वा श्रीमुनिदेवसंशविबुधात् काव्यं नवं नैषधम् / 3. 8106 /