________________ [ 3 ] से उनको मामल्लदेवी कहा गया। काश्मीर से इसका कोई सम्बन्ध नहीं / प्रसिद्ध साहित्यशास्त्री मम्मट कवि के मामा थे / इस पर हम आगे विचार करेंगे। __इस प्रकार श्रीहर्ष के जन्म-स्थान के सम्बन्ध में निश्चित रूप से कुछ मी कह सकने योग्य न होने पर भी इतना ही हम निश्चय से कह सकते हैं कि जिस तरह कालिदास के जन्म-स्थान का पता न होने पर भी उनका जीवन उज्जयिनी में बोता, उसी तरह श्रीहर्ष के जन्म-स्थान का निश्चय न होने पर मी जिस स्थान में उन्होंने अपना जीवन-निर्वाह किया और वे फले फूले, वह कन्नौज था। यह उन्होंने स्वयं स्वीकार भी किया है जैसा कि हम पोछे बता आये हैं। कन्नौज की सीमा तब काशी तक पहुँची हुई थी। इसीलिये इनके पिता को काशीनरेश का राजपण्डित भी कहते थे, मले ही ये लोग मूलतः गौड़देशीय रहे हों और इनकी धमनियों में बंगाली खून बहता हो। ___ जहाँ तक श्रीहर्ष के स्थिति-काल का प्रश्न है, वह निश्चित-प्राय ही समझिये / हम पीछे स्पष्ट कर चुके हैं कि श्रीहर्ष कान्यकुब्जेश्वर की राजसभा के पण्डित थे / इस सम्बन्ध में अब हमें इतना मात्र निश्चय करना है कि यह कान्यकुब्जेश्वर कौन थे तथा उनका स्थित-काल क्या है। प्रसिद्ध जैन कवि राजशेखर ने अपने 'प्रबन्ध-कोश' ( 1348 ई० में लिखित ) के अन्तर्गत 'श्रीहर्ष-विद्याधरजयन्तचन्द्र-प्रबन्ध' में श्रीहर्ष की जो जीवनी दे रखी है, तदनुसार यह कान्यकुब्जेश्वर जयन्तचन्द्र ( जयचन्द्र ) थे, जिनके पिता का नाम विजयचन्द्र था जिनको प्रशंसा में श्रीहर्ष ने नैषध के पन्चम सर्ग के अन्त में संकेतित अपने 'श्रीविजयप्रशस्ति' नामक ग्रन्थ की रचना की थी। ये वही जयचन्द्र हैं, जिनकी कन्या सयोगिता को स्वयंवर-स्थल से दिल्ली राज्य के अन्तिम नरेश पृथ्वीराज चौहान ने बलात् अपहरण कर लिया था। इतिहास में यह वह समय है जब भारतीय राजाओं में आपसो फूट का लाभ उठाकर मुहम्मद गोरी ने आक्रमण करके देश को हथिया लिया था और मुस्लिम साम्राज्य की नींव डाली थी। इतिहास के अनुसार जयचन्द का शासन काल 1168-94 ई० हैं। यह जयचन्द के यौवराज्यभिषेक के बाद भारद्वाजगोत्रीय डोडराउत श्रीअणंग नामक ब्राह्मण को दान में दिये गये कैमोली ग्राम के दान-पत्र से भी सिद्ध हो जाती है, जिसमें दान का समय 'त्रिचत्वारिंशदधिक-द्वादशसम्वत्सरे, अङ्कतोऽपि सम्बत् 1243' अर्थात् 1166 ई० स्पष्ट उल्लिखित है / 1 फलतः श्रीहर्ष का स्थिति-काल बारहवीं शती ई० का उत्तराधे ठहरता है। ___ कुछ विद्वान् कहते हैं कि चन्दबरदाई कवि ने अपने 'पृथ्वीराज रासो' के प्रारम्भिक मंगलाचरण पदों में पूर्ववती कवियों का स्मरण करते हुये श्रीहर्षको कालिदास का पूर्ववती कहा है 2 / इससे सिद्ध होता है कि श्रीहर्ष बड़े प्राचीन कवि हैं। यदि वे बारहवीं शती ई० के होते, तो वे चन्दबरदाई के समसामयिक ही ठहरते हैं। ऐसी स्थिति में यह कैसे संभव है कि श्रीहर्ष और उनका नैषध काम्य अपने ही समय में इतना लोक-विख्यात हो जाय कि अपने ही समसामयिक चन्दबरदाई के वन्दनम 1. Indian Antiquary (1511-12), अभिलेख 22 / 2. नरं रूपं पन्चम्मं श्रीहर्षसारं, नले राय कंठं दिने पद्ध हारं // छठं कालिदासं सुभाषा सुबद्धं , जिनै बागबानी सुबानी सुबद्धं //