________________ नैषधीयचरिते अमी ततस्तस्य विभूषितं सितं जवेऽपि मानेऽपि च पौरुषाधिकम् / उपाहरमश्वमजस्वचञ्चलः खुराञ्चलैः क्षोदितमन्दुरोदरम् // 57 / / - अन्वयः--ततः अमी 'तस्य' विभूषितम् , सितम् , जत्रे अपि माने अपि च पौरुषाधिकम् , अजस्त्रचञ्चलैः खुराश्चले; क्षोदित-मन्दुरोदरम् अश्वम् उपाहरन् / टीका--ततः आशानन्तरम् अमी ते भृत्याः विभूषितम् अलंकृतम् सज्जितमिति यावत् , सितम् श्वेतवर्णम् जवे वेगे अपि पौरुषेण = बलेन अधिकम् वेगे पुरुषात् अधिक बलशालिनमित्यर्थः (तृ० तत्पु०) माने परिमाणे अपि पौरुषेख पुरुष-परिमाणेन अधिकम् ऊर्ध्वबाहुपुरुषादप्युच्चमित्यर्थः भजनम् निरन्तरम् यथा स्यात्तथा चश्चलैः चटुलैः खुराणाम् शफानाम् अञ्चलैः अप्रैः (१०तत्पु०) सोदितम् चूों कृतम् मन्दुरायाः अश्वशालायाः ( 'वाजिशाला तु मन्दुरा' इत्यमरः) अदरम् मध्यम् (10 तत्पु० ) येन तम् (ब० वी० ) अश्वम् उपाहरन् आनीतवन्तः / 57. / / __व्याकरण--पौरुषाधिका--यहाँ 'पौरुष' शब्द श्लिष्ट है, जिसका 'जव' और 'मान' दोनों से सम्बन्ध है। 'जव' के साथ लगता हुआ यह 'पुरुषस्य भाव इति+अण' इस व्युत्पत्ति से बनकर विशेष्य-शब्द है अर्थात् जब में जो पौरुष-बल-से अधिक है, किन्तु 'मान के साथ लगता हुआ यह विशेषण-शब्द है अर्थात् पुरुषः = ऊवों कृत-बहुनुय प्रमाणमस्येति पुरुष+अण ('पुरुष हस्तिभ्यामण् च' पा० 5 / 2 / 38 ) दोनों हाथों को खड़ा किये हुए पुरुष को ऊँचाई वाले (परिमाण से अधिक), इसके लिए देखिए अमरकोश–'ऊर्ध्वविस्तृतदोःपाणिनृमाने पौरुषं त्रिषु'। चोदित-क्षोदं = चूर्ण चूर्णवदित्यर्थः करोतीति क्षोद+णिच् लट् क्षोदयति ( 'सुखादयो वृत्ति-विषये तद्वति वर्तन्ते ) नाम धातु बनाकर निष्ठा में क्त प्रत्यय / हिन्दी-तदनन्तर वे मृत्य नल का वह श्वेत घोड़ा ले आये, जो अच्छी तरह सजा हुआ था। वेग में मा ( पुरुष से भी ) बड़ा बलवान् तथा कद में भी दोनों हाथ खड़े किये पुरुष को ऊँचाई से (भी) ऊँचा था और निरन्तर चञ्चल बने खुरों के अग्र मागों से घुड़साल के मीतरी माग को खोदे हुए था / / 57 / - टिप्पणी-क्षोदित०-खुर से जमीन खोदने वाला घोड़ा उत्तम कहा जाता है, देखिए शालिहोत्र-'खुरैः खनन् यः पृथिवीमश्वो लोकोत्तरः स्मृतः' / 'क्षोदित' का 'क्षोभित' पाठान्तर मिलता है किन्तु 'खुर से पृथिवी हिला देने वाला' अर्थ ठीक नहीं जंचता है। यहाँ 'चलैः' 'चलैः' में तथा 'प' और 'स' को ऐक्य मानकर 'षितं' सितं' में यमक और 'दुरो' 'दर' में छेकानुपास है / उपाहरन् अश्वम्' में वाक्य समाप्त हो जाने पर भी फिर 'अजस्र दरम्' विशेषण जोड़ने के लिए वाक्य का आदान करने से यहाँ समाप्तपुनरात्तत्व है / / 57 // भथान्तरेणावटुगामिनाध्वना निशीथिनीनाथमहः सहोदरैः / निगालगाहेवमणेरिवोत्थितैर्विराजितं केसरकेशरश्मिमिः // 50 // अन्वयः-अथ अवटुगानिना आन्तरेण अध्वना निगालगात् देवमणः उत्थितः इव निशीथिनीनाथ-महः सहोदरैः केसर-केशः रश्मिभिः विराजितम् ( हयम् स नल: आरुरोह ) /