SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 86
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रथमः सर्गः / 15 पञ्चमस्य मूर्छनासु यन्मुमूर्छ तदयेन दैवेन कथञ्चित् निहोतुं शशाक, रागमूर्छना-जनित-सुखानुमव-पारवश्य-त्र्याजेन निहतवानित्यर्थः" / चाण्डपण्डित की व्याख्या इस प्रकार है-"अयं नलः अलीकेन भ्रान्स्या वीक्षितां प्रियां अये इति सम्बोध्य वभाषे तत् सभामध्ये निहोतुं न शाक . यत् पञ्चम. रागस्य मूर्छनासु आलपिताम् मुमूर्छ तदपलपितुं न शशाक / तत्र प्रत्यक्षे उत्तरं किमपि न शक्यते कम्"। नारायण एक और ही विकल्प दे रहे हैं-'यदा यरिकश्चिद् बमाणे, तद् अये= कामाय निहोतुं न शशाक समाजाय स्वपलपितुं समर्थोऽभूत् यतः समाज एव मुमूर्छ। :-कामः तस्मै : कामे परुषोक्तौ च' इति विश्वः / यहाँ कवि ने वियोग की लज्जा त्याग, प्रलाप, उन्माद और मूर्जा की भवस्थायें बताई हैं। 'मू 'मूर्छ' में यमकालं कार है / / 52 // अवाप सापत्रपतां स भूपतिर्जितेन्द्रियाणां धुरि कीर्तितस्थितिः / भसंवरे शम्बरवैरिविक्रमे क्रमेण तत्र स्फुटतामुपेयुषि // 53 // अन्वय-जितेन्द्रियाणाम् धुरि कीतितस्थितिः स भूपतिः तत्र असंवरे शंबर-वैरि-विक्रमे क्रमेण स्फुटताम् उपेयुषि ( सति ) सापत्रपताम् अवाप। टीका-जितानि-नियन्त्रितानीत्यर्थः इन्द्रियाणि यः तथाभूतानाम् (ब. वी० ) धुरि भने प्रथमपंक्तावित्यर्थः कीत्तिता स्तुता स्थितिः स्थानं यस्य तथाभूतः (ब० ब्रो० ) स भूपतिः राजा नलः तत्र समाजे असंवरेन संवर; निवः रोध इत्यर्थः यस्य तस्मिन् ( ब० वी० ) संवरितुमशक्ये इति यावत् शंबर असुरविशेषः तस्य वैरी शत्रुः कामः तस्य विक्रमे प्रमावे विकारे इत्ययः क्रमेण क्रमशः स्फुटताम् व्यक्तताम् उपेयुषि प्राप्ते सति प्रपत्र गलज्जा तेन सहितः इति सापत्रपः ( 30 जी०) तस्य भावः तत्ता ताम् अवाप प्राप्तवान् लज्जितोऽमवदित्यर्थः / / 5 / / __व्याकरण-अपनपा अप+Vत्रप् + अ (भावे )+टाप् / संवरः सम् +/g+अप् मावे। उपेयुषि-उप /+वसु (मूताथें ) सप्तमी। हिन्दी-जितेन्द्रियों में जिसका स्थान सब से आगे कहा जाता है, ऐसा वह राजा नल वहाँ / सभा में ) न छिपाये जा सकने वाले काम के प्रभाव के क्रमशः स्फुट हो जाने पर, लज्जा को प्राप्त हो बैठा / 53 // टिप्पणी-शंबर बैरी-शंबर एक राक्षस था, जिसे भगवान् कृष्ण के पुत्र प्रद्यम्न ने मारा था। जैसा हम पीछे कह पाये हैं, प्रद्युम्न कामदेव का अवतार था। यहाँ 'क्रमे' 'क्रमे' ये यमक और 'परे' 'वैरि' में छेकानुपास है किन्तु अनुपास में 'श' 'स', 'व' 'ब' तथा 'र' 'ल' में अमेद-नियम मानकर शंबर के '' को भी ले ले तो छेक नहीं रहेगा, क्योंकि छेक में व्यजनों को एक ही बार आवृत्ति का नियम है, अधिक बार आवृत्ति में वृत्त्यनुप्रास ही होता है / / 53 / / / अलं नलं रो ममी किलामवन्गुणा विवेकप्रमुखा न चापलम् / स्मरः स रस्यामनिरुखमेव सुजस्ययं सर्गनिसर्ग ईशः // 5 //
SR No.032783
Book TitleNaishadhiya Charitam 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandev Pant
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year1997
Total Pages164
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy