________________ नैषधीयचरिते इस तरह ( कहता हुआ ) वह ( हंस ) मूर्छित होकर राजा ( नल) के गिरे हुए आँसुओं के सिंचन से होश में आया // 142 // टिप्पणी-इस श्लोक में कवि ने करुणरस का बड़ा हृदय द्वावक चित्र खींचा है। हंसको इस करुणोक्ति से राजा नल भी आँसू बहाये बिना न रह सका। शोक के कारण गला रुंध जाने से हंस पूरे-पूरे वाक्य ही नहीं बोल सक रहा है। वैसे तो पूरे पदों को न कहने से न्यूनपदत्व दोष हो सकता था, किन्तु यहाँ न्यूनपदत्व करप्परस को और भी पुष्ट कर रहा है, इसलिए दोष के स्थान में सल्टा वह गुण बन गया है / यथावद् वस्तु-चित्रण होने से हम यहाँ स्वमावोक्ति कहेंगे। शब्दालंकार वृश्यनुपास है // 142 // ... इत्थममुं बिलपन्तममुञ्चद् दीनदयालुतयावनिपालः / रूपमदर्शि धृतोऽसि यदर्थ गच्छ यथेच्छमथेत्यमिधाय // 143 // अन्वयः-दोन-दयालुतया भवनिपाल: 'रूपम् अदशिं यदर्थम् (त्वम् ) धृतः असि, अथ यथेच्छम् गच्छ' इति अभिधाय इत्थम् बिलपन्तम् अमुम् अभुञ्चत् / टीका-दीनेषु = आत्तेंषु दयालोः मावः दयालुता तया = कारुणिकतया ( स० तत्पु०) भवनेः पृथिव्याः पाल:=पालकः राजा नल इत्यर्थः रूपम् = सौन्दर्यम् तवेति शेष अदर्शि= दृष्टम् , यस्मै इति यदर्थम् = ( अर्थेन नित्पसमासः ) ( स्वम् ) पृतः गृहीतः असि / अथ = एतदनन्तरम् ( त्वम् ) इच्छाम् अनतिक्रम्येति यथेचछम् = ( अव्ययीमाव स०) स्वेच्छानुसारं गच्छ = याहि इति=एवम् अभिधाय = कथयित्वा इस्थम् पूर्वोक्त-प्रकारेण विलपन्तम् = विलापं कुर्वन्तम् भमुम् एतम् हंसम् अमुञ्चत्त त्याज // 143 // ग्याकरण-दयालु दयते इति दय् +आलुच् / इत्थम् एतेन प्रकारेणेति इदम् +थम् / अदर्शि/दृश्+लुङ् कर्मवाच्य / हिन्दी-दीनों पर दयावान् होने के कारण राजा ( नल ) ने—( नेरा ) सौन्दर्य देख लिया है जिस हेतु तुझे पकड़ा है / इसके बाद तू जहाँ चाहता है, चला जा' यह कहकर इस तरह विलाप करते हुए उस ( हंस ) को छोड़ दिया // 143 // - टिप्पणी-विद्याधर ने 'यथेच्छम्' में यथा शब्द को देखकर यहाँ उपमा कह दी है, किन्तु हमें यहाँ कहीं भी उपमानीपमेय-भाव देखने में नहीं आ रहा है / केवल 'ममुं' 'मनु' में यमक और अन्यत्र वृत्त्यनुपास है / महाकाव्यों में सर्ग के अन्त में छन्द बदलने का नियम होने से कवि ने इस श्लोक में दोधक वृत्त अपनाया है जिसका लक्षण यह है-'दोधकमिच्छति भ-त्रितयाद्गौ' अर्थात् तीन मगण (SI ) और अन्त में दो गुरु / / 143 // मानन्दजाश्रुमिरतुत्रियमाणमार्गान् प्राक्शोकनिर्गमि'तमेव पयःप्रवाहान् / चक्रे स चक्रनिमचक्रमणच्छलेन नीराजनां जनयतां निजबान्धवानाम् // 14 // 1. निर्गलित