________________ नैषधीयचरिते अर्थ मान लें, तो बात दूसरी है / इन अलंकारों से यहाँ नल के घोड़े उच्चैः श्रवा की तरह हैंउपमा ध्वनि निकलती है। शब्दालंकार वृत्त्यनुपास तो सर्वत्र रहता ही है // 106 / सिताम्बुजानां निवहस्य यश्छलाद बमावलिश्यामलितोदरश्रियाम् / / तमः समच्छायकलङ्कसङ्कुलं कुल सुधांशोर्बहलं वहन् बहु // 10 // . अन्वयः-यः अलिश्यामलितोदरश्रियाम् सिताम्बुजानाम् निवहस्य छलात् तमः कुलम् सुधांश बहलम् कुलम् वहन् बहु बभौ। टीका-यः=तडागः अलिभिः =भ्रमरैः श्यामलिता = श्यामलीकृता ( तृ० तत्पु० ) उदर श्री (कर्मधा० ) येषां तेषाम् (ब० नो०) उदरस्य =मध्यभागस्व श्रोः=शोमा (ष० तरषु० ) अर्था येषां मध्यभागः तत्र स्थितानां भ्रमराणां कारणात् श्यामवर्णीभूता आसन् , सितानि = श्वेतानि तानि अम्बुजानि = कमलानि ( कर्मधा० ) तेषाम् निवहस्य= समूहस्य छलात् = व्याजात् तमः तमसा=अन्धकारेण समा= तुल्या ( तृ० तत्पु० ) छाया = कान्तिः ( कर्मधा० ) यस्य तथाभूत (ब० बी० ) यः कलङ्कः ( कर्मधा० ) तेन सङ्कुजम् व्याप्तम् (10 तत्पु० ) सुधांशोः चन्द्रमस बहलम् = सान्द्रं धनमितियावत् कुजम्-वहन्-धारयन् बहु = अधिकं यथास्यात्तथा बभौशुरुमै पूर्व समुद्रे एक एव चन्द्रमा आसीत् , अत्र तु भ्रमराधिष्ठितमध्यमागानाम् सितकमलानाम् व्याजे. सकलङ्कानां चन्द्रमा कुलमेव तिष्ठतीति भावः // 110 // ज्याकरण-अम्बुजम् अम्बुनि (जले ) जायते इति अम्बु /जन+ड। श्यामलित श्यामा करोतीति इस अर्थ में णिच् लगाकर श्यामलयति ( नाम धा० ) बना के निष्ठा में का हिन्दी-जो ( तड़ाग) भमरों द्वारा काली बना दो गई मध्य माग की कान्ति वाले श्वेत कमा के समूह के बहाने अन्धकार की सी कान्ति वाले कलक से युक्त चन्द्रमाओं के घने समूह को धारा करता हुआ अच्छा शोभित हो रहा था। टिप्पणी-मन्थन समय में एक ही चन्द्रमा था। किन्तु अब यहाँ चन्द्रमाओं की भरमार है गोल 2 श्वेत कमलों के मध्य भाग पर भ्रमर बैठने से वे काले बने हुये हैं। श्वेत चन्द्रमा पर अन्धेरा सा कलंक रहता है / इस साम्य को लेकर कमलों का अपहन करके चन्द्रमाओं की स्थापन होने से अपहृ ति है, जिसका पूर्ववत् चले आ रहे व्यतिरेक से संकर है। 'कुलं' 'कुलं' में यमा 'वह' 'बहु' में छकानुपात है, लेकिन 'बबयोरभेदः' मानकर यदि 'वह' को भी ले लें, तो एक अधिक वार वर्ण साम्य होने के कारण छैक न होकर वृत्त्यनुप्रास हो जाएगा // 11 // रथाङ्गमाजा कमलानुषङ्गिणा शिलीमुखस्तोमसखेन शाङ्गिणा। सरोजिनीस्तम्बकदम्बकैतवान्मृणालशेषाहिभुवान्वयायि यः // 11 // अन्वय-यः सरो...वात् रथाङ्गमात्रा कमलानुषङ्गिणा शिलीमुखस्तोमसखेन मृणालशेषाहिमुख शाङ्गिपा अन्वयायि।