________________ 762 नैषधमहाकाव्यम् / पुसि, जीवितेशधियं यमबुद्धि, विधेहि / अन्यत्र तु-अयमेकः परेषां शत्रूणाम् , इतरेषाञ्च आजी युद्धे, प्रभावं सामर्थ्यम्, एति, दस्रसहोदरस्य अश्विसदृशस्य, यस्य अस्य नलस्य, भूतेषु चमादिषु, पृथिव्यादिषु मध्ये इत्यर्थः, 'चमादौ जन्तौ च भूतं कीबम्' इति वैजयन्ती, इयं भूवश्यभावं समाश्रयति खलु, तत् तस्मान् , अनास्मिन् लले जीवितेशधियं कान्तबुद्धिं, प्राणेश्वरबुद्धिमित्यर्थः, 'जीवितेशो यमे कान्ते' इति विश्वः, विधेहि // 18 // ___ यमपक्ष-अकेला यह ( यम ) प्रेतोंकी पशिमें प्रभुत्वको प्राप्त करता है अर्थात् यह पतोंका पति है ( या--प्रेतों में अधिक सामर्थ्यवान् है ), अश्विनीकुमारों के सहोदर ( भाई ) जिस यम का भूतों ( मृतकों ) में बहुत-से भूत वशीभूत. रहते हैं, ( अथवा--भूतों अर्थात् प्राणियोंमें बहुतसे भूत (प्राणी) जिस यमके वशी होते हुए अभाव अर्थात् नाशको प्राप्त करते हैं ); अत एव हे मुग्धे ( 'यम एवं नलमें से यह कौन है ?' ऐसा निश्चय नहीं करनेबाली दमयन्ति ) ! इसमें यमबुद्धि करो अर्थात् इसे 'यम' जानो। [ बहुत थोड़े व्यक्तियों के मुक्त होने के कारण अधिक प्राणियोंका यमका वशवतो होना कहा गया है तथा 'संज्ञा' नामकी सूर्यपत्नीके गर्भसे यम तथा अश्विनीकुमारों का जन्म होनेसे यहां पर यमको अश्विनीकुमारोंका सहोदर ( सगा भाई ) कहा गया हैं ] / नलपक्षमें-शत्रुओं तथा आत्मीयों ( अथवा--बड़े-बड़े तेजस्वियोंको भी छोटा करनेवालों, अथवा--श्रेष्ठ दात्रुओं ) के युद्ध में यह ( नल ) अकेला ही प्रभावको प्राप्त करता है अर्थात् उनकी अपेक्षा अधिक प्रभावशील रहता है / पृथ्वी आदि पांच महाभूतोंमेंसे यह पृथ्वी अश्विनीकुमारोंके सदृश ( सौन्दर्यवाले ) जिस इस (नल ) की वशवर्तिनी रहती है अर्थात् यह पृथ्वीपति है, अत एव हे मुग्धे ( सुन्दरी दमयन्ति ) ! इस ( नल) में प्राणनाथ की बुद्धि करो अर्थात् इसे वरण कर अपना प्राणपति बनावो // 18 // गुम्फो गिरां शमननैषधयोः समानः शङ्कामनेकनलदर्शनजातशङ्के / चित्ते विदर्भवसुधाधिपतेः सुताया यन्निर्ममे खलु तदेष पिपेष पिष्टम् / / 19 / / गुम्फ इति / शमननैषधयोः यमनलयोः, समान एष गिरां गुम्फः सन्दर्भः, अनेकेषां नलानां दर्शनेन जातशङ्के विदर्भवसुधाऽधिपतेः सुतायाः वैदाः , चित्ते शङ्का निर्ममे इति यत् तत् पिष्टं पिपेष खलु प्रागेव साशङ्के पुनः शङ्कोत्पादनं पिष्टपेषणभायम इत्यर्थः / अत्र साशङ्कशङ्कोत्पाद-पिष्टपेषणवाक्यार्थयोः एकत्रासम्भवेन सा. श्याक्षेपात् असम्भवद्वस्तुसम्बन्धो वाक्यार्थवृत्तिनिदर्शनालङ्कारः // 19 // ___ यम तथा नलके विषय में समान ( सरस्वती देवीके ) वचन-समूहने विदर्भराजकुमारी ( दमयन्ती ) के अनेक नलों के देखनेसे शङ्कायुक्त चित्तमें जो शङ्का उत्पन्न की, वह पिष्टपेषण हुआ। [ चूर्ण-चूर्णनके समान, अनेक अर्थात् पांच नलोंको देखकर पहलेसे ही सन्देहयुक्त दमयन्तीके चित्तमें यम तथा नलके विषय में समानरूपसे कहा गया सरस्वती