________________ त्रयोदशः सर्गः। 761 द्विताया अस्य कृष्णस्वं कृष्णवर्णत्वं, परपीडाजनकत्वेनास्य दुर्यशसा कृष्णस्वमित्यर्थः। अन्यत्र-देवः देवतुल्यः, अम्बरमणी सूर्यः, 'दिकारात्-' इति विकल्पात् ङीष तद्वत् रमणीयमूर्तिः अस्य पिता वीरसेनः, प्रभावण प्रतापेन, नमितान्यखिलानां राज्ञां तेजांसि येन सः, 'राजा प्रमौ च नृपतौ क्षत्रिये रजनीपतौ' इति मेदिनी, अस्य शक्तिः प्रभावमन्त्रोत्साहलक्षणं सामर्थ्य, 'कासुसामर्थ्ययोः शक्तिः' इत्यमरः, परेषु शत्रुषु, गदाम् आयुधविशेषं, नियोक्तुः निपयितुः, अस्य नलस्य, कृष्णत्वं विष्णुवं, गदाधरत्वादिदि भावः / शेषं पूर्ववत् // 17 // यमपक्षमें-प्रभाव (धूप ) से पूर्णचन्द्र के तेजको कम करनेवाले तथा रमणीय मूर्तिवाले सूर्यदेव इसके पिता हैं। इसकी शक्ति किसके प्रति अर्थात् किसके प्राणहारण में समर्थ नहीं है ? ( अथवा-इसकी 'उत्क्रान्तिदा' नामकी शक्ति अर्थात शस्त्रविशेष किसके प्रति समर्थ नहीं है ) अर्थात् सबके प्रति समर्थ है / दूसरों में रोगों ( अथवा-गदा) को नियुक्त करनेवाले अर्थात कर्मविपाकानुसार दूसरोंको रुग्ण या शासित करनेवाले इसका वर्ण कृष्ण है ( अथवा-परपीडाजनक होनेसे इसका अपयश है ) / [ यहां पर सरस्वती देवीने 'यम' को चन्द्रप्रतापनाशक सूर्य का पुत्र बतलाकर चन्द्रवंशोत्पन्न नलका देषी होनेसे तथा सबके प्राणहर्ता एवं रोगनियोजक होनेसे दमयन्तीके लिए 'यम'को अवरणीय होनेका संकेत किया है ] // ___ नलपक्षमें-प्रभाव ( अपने क्षात्रतेज ) से सम्पूर्ण राजाओं के तेजको कम करनेवाले तथा वस्त्र और रत्नोंसे रमणीय आकृतिवाले देव ( कान्तिमान् राजा वीरसेन ) इसके पिता हैं / ( अथवा "तथा सूर्य और कामदेवके समान रमणीय"..। अथवा-हे अम्ब ( पुण्यचरिता होनेसे मातृवत् जगद्वन्द्य दमयन्ति )! रमणियोंके लिये रमणाय आकृति वाले,...)। इसको सामर्थ्य किस शत्रुके प्राणहारिणी सिद्ध नहीं हुई है अर्थात् सनके प्रति प्राणहारिणी सिद्ध हुई है ( इसने समस्त शत्रुओं के प्राणहरण किये हैं। अथवा-इसकी सामथ: यमके प्रति प्राणहारिणी अर्थात् यम-भय कारिणी नहीं होती ? अर्थात् सर्वभयकारक यमको भी इससे भय उत्पन्न होता है ) / शत्रुओं मे गदावा नयुक्त ( गदाप्रहार ) करनेवाले इसका कृष्णत्व अर्थात कृष्णाभाव ( कृष्ण भगवान् की समानता ) है, ( अथवा - श्रेष्ठ बागपीटाको नियुक्त करनेवाले ) शत्रुओंकी बाणप्रहार द्वार। अतिशय पीडित करनेवाले इसका कृष्णत्व (अर्जुनभाव अर्थात अर्जुनकी समानता ) है अर्थात बाणप्रहार में यह अर्जुनके समान है // 17 // एकः प्रभावमयमेति परेतराजौ तजीविदेशाधयमत्र विधे। मुग्धे ! / भूतेषु यस्य खलु भरि यमर य वश्यभावं -माश्रयति दरमहादरस्य / / 8 // एक इति / अयमेकः परेतानां प्रेतानां, 'परेतप्रेतसंस्थिताः' इत्यमरः, राजौ पनौ, प्रभावं प्रभुत्वम , एति, दम्रसहोदरम्य अश्विनीभ्रातुः, यस्य यमस्य भूतेषु प्राणिषु, मध्ये 'भूतं प्राणिपिशाचादौ' इति वैजयन्ती, भूरि अनेकं भूतं, वशं गतो वश्यः तस्य भावं वश्यस्वं, समाश्रयति खलु / हे मुग्धे ! तत् तस्मात् , अत्र अस्मिन्