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________________ 752 नैषधमहाकाव्यम् / शास्त्रमें वर्णित कमल-मत्स्य-चक्र आदि रेखारूप चिह-विशेष ) को धारण करते हैं अर्थात इसके हाथ-पैरों में कमल चक्र मत्स्य आदि की रेखाओंसे मालूम होता है कि यह राजा बल आदि से समृद्धिमान राज्यका अधिक परिमाणमें भोग करेगा, इस कारण से इन्द्र के साथ इन्द्राणीके समान इसके साथ ( विवाह करके ) हर्षित होवो // 6 // आकर्ण्य तुल्यमखिला सुदती लगन्तीमाखण्डलेऽपि च नलेऽपि च वाचमेताम् / रूपं समानमुभयत्र विगाहमाना श्रोत्रान्न निर्णयमवापदसो न नेत्रात् // 7 // आकयेति / सुदती शोभना दन्ता यस्याः सा, अत्र दन्तस्य दवादेशलक्षणा. भावात् 'अग्रान्त-' इत्यादिसूत्रे चकारस्यानुक्तसमुच्चयार्थत्वात् दनादेश इत्येके। सुदत्यादिशब्दानां ख्यभिधायितया योगरूढत्वात् 'स्त्रियां संज्ञायाम्' इति विकल्पात दत्रादेश इति केचित् / एतदेवाभिप्रेत्य 'सुदत्यादयः प्रतिविधेयाः' इत्याह वामनः / उगितश्चेति डीप असौ मी, आखाडलंपि च इन्द्रेऽपि च, नलेऽपि च, तुल्यम अविशेषेण, लगन्ती सम्बध्नतीम्, एताम् अखिलां वाचम् आकर्ण्य उभयत्र इन्द्र. नलयोः, समानं निर्विशेष, रूपम् भाकारं, विगाहमाना अग्रे दर्श दर्शम् आलोचयन्ती, श्रोत्रात् श्रवणेन्द्रियात् , निर्णयं न अवापत् सरस्वतीकृतवर्णनाया व्यक्तिविशेषाबोधकत्वादयम् इन्द्रो नलो वेति निश्चयं न लेभे / आप्नोतेः लुङि लृदित्वात् 'पुषादिघुत-'इत्यादिना च्लेरडादेशः नेत्रात् चतुरिन्द्रिगाच्च, न निर्णयमवापत् इन्द्रनलयोः समानाकारतया पुनः पुनदृष्ट्वाऽपि न निश्चेतुं शशाकेत्यर्थः // 7 // उस सुन्दर दांतोंवाली ( दमयन्ती ) ने इन्द्र तथा नल में समान रूप से लगती (घटती) हुई इस बात ( सरस्वतीकृत वर्णन ) को सुनकर दोनों ( नलरूप धारी इन्द्र तथा वास्तविक नल ) में समान रूप को देखती हुई (व्रमशः) कान तथा नेत्र से ( कानसे सरस्वतीकृत वन सुनकर तथा नेत्रसे रूप देखकर वर्णन तथा रूप-दोनोंके समान होने के कारण) निर्णय को नहीं प्राप्त किया अर्थात् 'यह इन्द्र है या नल ? यह निश्चय नहीं कर सकी / / 7 / / शक्रः कमेष निषधाधिपांतः सात ? दलायमानमनसंपारभाव्य भैमीम निदिध्य तत्र वन्स्य रखार मर भयो सृजद्भगवती वचसांस्र सा इक इति / अथ सा भगवती सरस्वती, भैमीम एष वीरः, शक्रः किम् ? स स्वप्राण नाथः, निषधाधिपतिः नलः, वति दोलायमानम्नसं देव्याः श्लेषोक्त्या आ. कारसाम्याच्च सदिहानचित्तां, परिभाष्य समय, तत्र पञ्चवीरमध्ये, पवनस्य सखायम् अग्नि, निदिश्य हस्तेन प्रदर्श्य, अस्यां भैम्यां विषये, भूयो वचसा नजं वाक्यपरम्पराम, असृजत् जगादेत्यर्थः // 8 // ( यह इन्द्र है क्या ? अथवा वह (दूतरूपमें पूर्वकालमें दृष्ट ) नैषधराज नल है ? इस
SR No.032782
Book TitleNaishadh Mahakavyam Uttararddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas Shastri
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1997
Total Pages922
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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