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________________ त्रयोदशः सर्गः। 781 भाष ) को नहीं देखती हो ? अर्थात् अवश्य ही देखती हो / ( अथवा-नहीं देखती हो यह आश्चर्य है अर्थात् अवश्य तुम्हें देखना चाहिये। अथवा-हाथके परिमाणसे अधिक, आश्चर्य कारक ( ओढ़ने के कारण ) वाहुपर स्थित सूक्ष्मतम वस्त्र को गुप्तरूप (दूसरी वस्तु को देखनेके व्याज ) से नहीं देखती हो, उसे देखना चाहिये / अथवा-अतिशय ( हस्त परिमाणसे अधिक ) बाहुओं तथा अतिशय ( 'परस्पर' से अधिक बड़े) नेत्रोंको नहीं ....... / अथवा-अत्यन्त दानशील हाथों ( तलहत्थियों ) वाले बाहुओं तथा हाथों (तलहत्थियों) को अतिक्रमण किये हुए अर्थात् हाथोंसे भी बड़े नेत्रों को' : ''अथवा-अनेकोंके नेताओंके समूह ..... ) // 5 // लेखा नितम्बिनि ! बलादिसमृद्धराज्यप्राज्योपभोगपिशुना दधते सरागम् | एतस्य पाणिचरणं तदनेन पत्या साद्ध शचीव हरिणा मुदमुद्वहस्व // 6 // __लेखा इति / नितम्बिनि ! हे प्रशस्तनितम्बे ! प्रशंसायामिनिः बलादीनां बलाद्यसुराणां. यानि समृद्धानि राज्यानि तेषां प्राज्योपभोगस्य प्रभूतसुखानुभवस्य,पिशुनाः खलाः, द्वेष्टार इत्यर्थः, तदसहमानाः इति यावत् , लेखाः देवाः 'अमरा निर्जरा देवा लेखा अदितिनन्दनाः' इत्यमरः / एतस्य वीरस्य, इन्द्रस्येत्यर्थः, पाणिचरणं पाणिचरणी, प्राण्यङ्गत्वादेकवद्भावः सरागं सानुरागं, दधते शिरसा धारयन्ति, प्रणमन्ती. त्यर्थः, धाजः कर्तरि लट् तङि बहुवचनम् तत्तस्मात् , अनेन हरिणा देवेन्द्रेण, पल्या सार्द्ध शचीव मुदम् उद्वहस्व, शच्याः सपत्ना भवेत्यर्थः; इत्येकोऽर्थः। अन्यस्तुसरागम् आताम्रम्, एतस्य वीरस्य, नलस्येत्यर्थः पाणिचरणं कत्त, बलादीनि राज्यागानि, 'स्वाम्यमात्यसुहृत्कोश-राष्ट्रदुर्गबलानि च / राज्याङ्गानि प्रकृतयः-' इत्यमरः तैः समृद्धस्य राज्यस्य यः प्राज्योपभोगः तस्य पिशुनाः सूचकाः, लेखाः चक्र. ध्वजादिरेखाः, दधते दध धारणे इति धातोभीवादिकालट तङयेकवचनम् तदनेन वीरेण, नलेनेत्यर्थः, पत्या साद्धं हरिणा शचीव मुदम् उद्वहस्व // 6 // इन्द्रपक्षमें-हे विशाल नितम्बोंवाली ( दमयन्ति) ! बल आदि (वृत्र, नमुचि, जम्भ, पाक आदि दैत्य ) के समृ / ( ऐश्वर्यशाली ) राज्य के विस्तृत उपभोगके वैरी देवलोग इस ( इन्द्र ) के हाथ-पैरों ( हस्तावलम्बन देकर हाथ तथा नमस्कार करनेके लिये चरण ) को प्रेमपूर्वक धारण करते है, अतः इस इन्द्र के साथ इन्द्राणीके समान हर्ष प्राप्त करो अर्थात् इसके साथ विवाह करके इन्द्राणीकी सपत्नी ( सौत ) बनो / ___नलपक्षमें-रक्तवर्णयुक्त इसके हाथ-पैर बल ( स्वामी-मन्त्री आदि राज्याङ्ग, अथवासेना / से ऐश्वर्यशाली राज्यके अधिक अर्थात् भरपूर उपभोग करनेके सूचक रेखा ( सामुद्रिक 1. 'बाहू अतिशयितौ वदान्यो शयौ ययोस्तावतिशयो। नेत्रे च शयमतिकान्ते (अतिशये)। अतिशयौ च अतिशये चेति' नपुंसकमनपुंसकेनैकवचास्यान्यतरस्यान् (पा० सू० 112 / 69) इति नपुंसकत्व एकत्वे चेदं व्याख्यानम् /
SR No.032782
Book TitleNaishadh Mahakavyam Uttararddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas Shastri
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1997
Total Pages922
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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