________________ 1520 नैषधमहाकाव्यम् / देखो। ( पाटा-हे मोटे वेले के खम्भेके समान उरुओं वाली ! इस पाठमें पिब+उरुर. म्मातरु ...." = पीवरोरुग्भातरु".' ऐसा पद समझना चाहिये ) / [तुम रात्रिमें विकसित हुए नीलकमल तुल्य कान्तिवाले नेत्रसे चन्द्रमाको सम्यक प्रकार से देखोगी जो तुम्हारे नेत्रको लोग नीलकमल समझेंगे / चन्द्रोदय हो गया नीलकमल विकसित हो गये तथा चकोर चन्द्रिका-पान करने लगे ] // 42 // असंशयं सागरभागुदस्थात् पृथ्वीधरादेव मथः पुराऽयम् / अमुष्य यस्मादधनाऽपि सिन्धौ स्थितस्य शैलादूदयं प्रतीमः / / 43 // असंशयमिति / पुरा पूर्व सागरभाक समुद्रगर्भस्थोऽयं चन्द्रः मथो दण्डभतात्पृ. थ्वीधरात्पर्वतान्मन्दराद्वेरेव हेतोरुदस्थादुत्पन्न इति असंशयं निश्चितम् / पुराणादौ यदेवं श्रयते तत्सत्यमित्यर्थः / पुरा उदस्थात्प्रथमसंभवावसरे तस्मादेव समुस्थित इति वा / तत्र हेतुमाह-यरमा तोरधुनापि संभवान्त रावसरेऽपि सिन्धौ स्थितस्य सागरगर्भरथस्याप्यमुष्य चन्द्रस्य शैलादुदयाचलादेवोदयमुत्पत्ति प्रतीमो जानीमः / प्रत्यहं सागरस्थस्याप्यस्याचलोत्पत्तिशीलत्वरूपलिङ्गदर्शनात्समुद्रमथने प्रथमसंभवा. वसरेऽप्ययमचलादेवोत्पन्न इति निशिनुम इत्यर्थः / उदयाचल शिखरं चन्द्रोऽतिकामतीति भावः // 3 // पहले ( समुद्रमथनके समय ) समद्रन्थ यह चन्द्रमा निश्चय मथनदण्डरूप (सुमेरु ) पर्वतसे अदर मेव उत्पन्न हुअा है, क्योंकि इस समय भी समुद्र में स्थित इस चन्द्रमाके उदयको पर्वत ( उदयाचल ) से ही उत्पन्न हमलं ग देखते हैं / [ इस समय प्रतिदिन उदया. चल से ही समुद्ररथ चन्द्रमाका उदय देखकर पूर्व काल में भी इस चन्द्रमाका मन्थनदण्डत मन्दराचल से ही उदय होना प्रतीत होता है ] / / 43 / / निजानुजेनातिथितामुपेतः प्राचीपतेर्वाहनवारणेन / सिन्दूरसान्द्रे किमकारि मृध्नि तेनारुणश्रीरयमुज्जिही ते ? // 44 // निजेति / / निजानुजेन एकस्मात्सिन्धोत्पन्नतयाऽरमाचदात् पश्चाज्जातेन कनी. यसा भ्रात्रा प्राचीपतेरिन्द्रस्य वाहनवारणेन प्राच्यां स्थितेन रावतेनातिथितामुपेतः प्राप्ठः। प्राच्यामुदितत्वात्तत्सविधं प्राप्तः सन्नयं चन्द्रोऽग्रजवासिन्दूरेण सान्द्रे मूनि अकारि कृतः किम् ? गौरवान्नमस्कारपूर्व शिरस्यारोपितः किमित्यर्थः / तेन सान्द्रः सिन्दूरशिरःस्थापनेन हेतुना लग्नसिन्दूरवशादयमरुणश्रीरारक्तशोभः उजिहोते उदेति, उज्जिहीते किमिति वा / उदितश्चन्द्रः सिन्दूररक्तो दृश्यत इत्यर्थः // 44 // (4क समुद्र में निवास करने तथा समुद्रमथनके अवसर पर चन्द्रमाके बाद उत्पन्न होनेसे ) अपने छोटे भाई इन्द्र के वाहनभूत ऐरावतने ( पूर्व दिशामें जानेसे ) अतिथित्वको प्राप्त चन्द्रमाके मस्तकको सिन्दूरसे लिप्त कर दिया है क्या ? जिससे यह ( चन्द्रमा ) अरुण शोभावाला उदित हो रहा है / [ गृहपर आये हुए पूज्य अतिथिके मस्तकमें सिन्दूरादिका