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________________ 1518 नैषधमहाकाव्यम् / रम्भि / अन्योऽपि वैरिवर्णनया रुष्टः सन्नरुणो भवति, यत्परिहारार्थमुदितः सन् वर्णकेन प्रसादनाथं स्तूयते / प्रतीयमानोत्प्रेक्षा। 'इव'शब्दस्योभययोजना वा / उपा. श्लोकि, 'सत्या-' इति णिजन्ताकर्मणि चिण // 39 // ___ अनन्तर उस राजा (नल ) के द्वारा किये गये इस प्रकार ( 22 / 26-38 ) के वर्णन से क्रुद्ध से ( अत एव ) ओढउलके पुष्पके समान लाल और उदय होते ( पक्षा-आगे बढ़ते हुए ) चन्द्रमाका मानो अनुनय करने ( मनाने ) की इच्छासे श्लोकों द्वारा स्तुति करने लगे। [लोकमें भी कोई व्यक्ति शत्रुके वर्णन करनेसे, रुष्ट होनेसे रक्तवर्ण होकर आगे बढ़ते हुए व्यक्तिको प्रसन्न करने के लिए स्तुति करता है। अन्धकारके बाद उदित होते हुए अरुणवर्ण चन्द्रमाको देखकर राजा नल अन्धकारका वर्णन करने लगे ] // 39 // पश्यावृतोऽप्येष निमेषमद्रेरधित्यकाभूमितिरस्करिण्या। प्रवर्षति प्रेयसि ! चन्द्रिकाभिश्चकोरच०चूचुलुकप्रमिन्दुः // 40 // पश्येति / हे प्रेयसि प्राणप्रिये ! एष इन्दुश्चन्द्रिकाभिश्च कोराणां चन्द्रिकानवदमृतपायिनां पक्षिणां चन्च्च एव चुलुकास्तान्पूरयित्वा प्रकर्षेण वर्षति सुधामित्या र्थात् / यावता चकोरचञ्चपूरणं भवति तावरप्रमाणं वर्षतीत्यर्थः / त्वं पश्य / किंभूतः? अनेरुदयाचलस्याधित्यकाभूग्योर्ध्वशिखरेणैव तिरस्करिण्या जवनिकया निमेषलत. णमत्यल्पकालमावृतोऽपि सन् / संपूर्णानुदितोऽपि प्रथमचन्द्रिकाभिरेव चकोराणामानन्दं करोति, किं पुनरुदितः सन्निति भावः / अन्योऽप्युपकारी दूरस्थोऽप्युदयो। न्मुखोऽन्येषामुपकरोति / दुलुकप्रम् , 'वर्षप्रमाणे-' इत्यादिना पूरेणमुल , ऊकारलोपश्च // 40 // ___ हे पर मप्रिये ( दमयन्ति ) ! उदयाचल के ऊर्ध्व शिखर रूप पर्देसे क्षणमात्र ढका हुआ भी यह ( उदीयमान ) चन्द्रमा चाँदनीसे चकोरके चोंचरूपी चुल्लूको भरकर अच्छी तरह वृष्टिकर रहा है, यह तुम देखो / [ जब यह अपूर्ण उदयको प्राप्त होने के पहले ही चकोरोंके चोंचरूपी चुल्लूको चन्द्रिकाओंसे भरकर अतिशय बरस रहा है, तब पूर्णोदय हो जानेपर और भी अधिक बरसेगा, इसमें सन्देह नहीं है / लोकमें भी कोई उपकारी व्यक्ति अभ्युदयोन्मुख होकर दूरस्थ रहते हुए भी उपकार करता है ] // 40 // / ध्वान्ते दुमान्तानभिसारिकास्त्वं शङ्कस्व सङ्केतनिकेतमाप्ताः / छायाच्छलादुज्झितनीलचेला ज्योत्स्नाऽनुकूलैश्चलिता दुकूलैः॥ 41 / / ध्वान्त इति / हे प्रिये ! त्वं चन्द्रोदयात्पूर्व ध्वान्ते सति द्रमान्तान् तरुनिकट देशानेव वृत्ताधोभागानेव संभोगार्थ कामुकदत्तं संकेतनिकेतमाप्ताः प्राप्ता अभिसा. रिकाः स्वैरिणीः शङ्कस्व संभावय / तथा, इदानी चन्द्रोदये सति वृक्षाधोभागवतिछायाच्छलादुज्झितं पूर्व वृतं तमोनुकूलं नीलं चेलं वस्त्रं याभिस्तादृशीः सतीः सवर्णत्वाज्योत्स्नानुफूलैश्चन्द्रिकानुगुणधवल तरैर्दुकूलैरुपलक्षिताः सतीश्चलिताः संभोग
SR No.032782
Book TitleNaishadh Mahakavyam Uttararddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas Shastri
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1997
Total Pages922
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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