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________________ 778 नैषधमहाकाव्यम् / ब्रूमः किमस्य वरवर्णिनि ! वीरसेनोभूतिं विषद्वलविजित्वरपौरुषस्य ? | सेनाचरीभवदिभाननदानवारिवासेन यस्य जनितासुरभी रणश्रीः // 3 // ___ अथ लोकपालान् नलञ्च प्रत्येकं चतुर्भिः श्लोकः श्लेषभङ्गया वर्णयति, बम इत्यादि / वरवर्णिनि ! हे उत्तमाङ्गने ! 'उत्तमा वरवर्णिनी' इत्यमरः, द्विषतः शत्रोः, बलस्य बलासुरस्य, अन्यत्र-द्विषतो बलानां, 'बलोऽसुरे बलं सैन्ये' इति वैजयन्ती, विजित्वरपौरुषस्य जित्वरपराक्रमस्य, अस्य वरस्य, इन्द्रनलयोः सामान्यनिर्देशः, वीरसेनानां पराक्रान्तसैनिकानाम् , उद्भूतिम् उज्जम्भणं शौर्यप्रकाशनमित्यर्थः, अन्यत्र-वीरसेनात् तदाख्यनृपात् , उद्भूतिम् उत्पत्ति, किं ब्रमः ? कथं वर्णयामः ? यस्य वीरस्य, रणश्रीः सेनाचरीभवतोः सैनिकायमानयोः, इभाननदानवार्योः विना. यकविष्ण्वोः , वासेनाधिष्ठानेन, जनिता असुराणां भीर्यया सा तादृशी, जातेति शेषः / अन्यत्र-सेनाचरीभवतां सेनासञ्चारिणाम, इभानां गजानाम् ,आननेषु दानवारीणां मदजलानां, वासेन वासनया, सुरभिः जनिता सुगन्धिः कृता। 'ठूलोपे पूर्वस्य दीर्घोऽणः // 3 // इन्द्रपक्षमें-हे वरवर्णिनि ( उत्तमे दमयन्ति )! शत्रुभूत बल ( नामक दैत्य ) को जीतनेवाला है पुरुषार्थ जिसका ऐसे इसके वीर सेनाओं के विशिष्ट ऐश्वर्य ( या सामर्थ्य या बाहुल्य ) का हम कैसे वर्णन करें ( वागगोचर होनेसे उसका वर्णन अशक्य है ), जिसकी सेनामें चलते ( रहने ) वाले गजानन (गणेशजी ) तथा दानवारि (विष्णु भगवान् ) के रहनेसे असुरोंसे जो देवताओंको भय था, उसके क्षेपण ( नष्ट होने ) से शोभा हो गयी हैं ( अथवा-जिसकी रणभूमिकी शोभा सेनामें चलनेवाले गणेशजी तथा विष्णु भगवान् के रहनेसे असुरोंको भय देनेवाली हो गयी है) नलपक्षमें-हे वरवर्णिनि ! शत्रुओं की सेन। ( अथवा-शारीरिक बल ) को जीतने वाला है पुरुषार्थ जिसका ऐसे इसकी 'वीरसेन' (नामक राजा) से उत्पत्ति का हम क्या ( अथवा-कैसे ) वर्णन करें ? (क्यों कि जो स्वयं प्रसिद्ध नहीं रहता है, उसी का वर्णन उसके पिता आदि का नाम बतला कर किया जाता है, परन्तु इस 'नल' के स्वयं जगत्प्रसिद्ध होनेसे इसके पिता 'वीरसेन' का नाम बतलाकर वर्णन करना व्यर्थ एवं अनुचित भी है ) जिसकी युद्धभूमिश्री सेनामें चलनेवाले (अथवा--अचल अर्थात् पर्वतवत् स्थिर रहनेवाले ) हाथियोंके मुख के दानजलके गन्धसे सुगन्ध युक्त हो गयी है / [इस इलोकसे लेकर 'अत्याजि-' ( 13 / 27 ) के पूर्वतक इन्द्र, अग्नि, यम और वरुण का 4-4 श्लोकोंसे वर्णन पहले तथा नलका वर्णन बादमें किया गया है और वहां / 13 / 28 ) से 'किं ते तथा' (13 / 31) तक चारों श्लोकोंसे नलका वर्णन पहले तथा उन्हीं 4 श्लोकोंमें से 1-1 श्लोकों से . 1. 'यौवनोष्मवती शीते शीतस्पर्शा च याऽऽतपे। भर्तृभक्ता च या नारी सोच्यते वरवर्णिनी / ' इति वृद्धाः /
SR No.032782
Book TitleNaishadh Mahakavyam Uttararddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas Shastri
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1997
Total Pages922
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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