________________ 1466 नैषधमहाकाव्यम् / मालावाली आकाशरूपिणी ( अमूर्त भो ) मूर्तिसे इस समय ( सन्ध्योपासन कर्म समाप्त करने के बाद ) अङ्गहार (मुख, हाथ आदि अङ्गोंका सञ्चालन ) करते हैं क्या ? / ( अथवाकेवल चन्द्र, सर्प तथा चर्मादिसे भूषित शरीरसे ही अङ्गहार नहीं करते हैं ? अपितु अपनी आठ मूर्तियोंमेंसे आकाशमूर्तिसे भो अङ्गहार करते हैं ) / अथच-चतुर नट बाल्य-तारु. ण्यरूप वयः-सन्धि ( या-रसादि-सन्धि ) में स्थित, समृद्धियुक्त भी स्त्रीको नृत्यकलामें अनभिज्ञ जानकर समाके अनुरागमें विशिष्ट ( अपने ) शरीरसे अङ्गहार करता है, यह असाम्प्रत ( अयोग्य ) है क्या ? अर्थात् नहीं, ( क्योंकि नृत्यकलाको नहीं जानने वाली वैसे कुनटीसे समानुरञ्जन होना असम्भव जानकर उसका स्वयमेव अङ्गहार करना सर्वथा उचित ही है ) / अथच-अतिशय चञ्चल ( कोई विट ) नृत्यकलामें अचतुर भी किसी स्त्रीको शरीर-सौन्दर्यसे अनुरागोत्पादनमें समर्थ तथा बाल्य-तारुण्यरूप वयः-सन्धिमें वर्तमान अर्थात् युवावस्थामें प्रवेश करती हुई जानकर उसके शरीरके अतिशय विस्तृत होनेसे श्रेष्ठ मुक्ता-समूहकी मालासे हार बनाता है अर्थात् उसमें अनुरक्त होकर उसे हार देता है / अथच-चतुर नर्तक, बाल्य-तारुण्यरूप वयः-सन्धिमें वर्तमान कुनटी (पृथ्वीमें प्रसिद्ध नटी ) अर्थात् लोकप्रसिद्ध नर्तकीको समाके अनुराग उत्पन्न करने में समर्थ जानकर भी अतिशय बड़े श्रेष्ठमुक्तासमूहकी मालाको पहने हुए स्वशरीरसे जो अङ्गहार करता है, वह उचित है क्या ? अर्थात् नहीं उचित है, (क्योंकि नर्तकीके नृत्यके अवसरमें उसका नृत्य करना सभासदोंको यथायोग्य अनुरजन नहीं करनेसे अनुचित ही है ) // 7 // भूषास्थिदानस्युटितस्य नाट्यात्पश्योडुकोटीकपटं वहद्भिः / दिङमण्डलं मण्डयतीह खण्डैः सायंनटस्तारकराकिरीटः // 8 // भूषेति। हे भैमि ! तारकराट् चन्द्रः किरीटो यस्य स शंभुः सायं नटतीति सायंनटो नर्तक उद्धृतान्नाट्यन्नत्तातोस्वटितस्य भूषास्थ्नां दाम्नो मालाया उच्छलितैः खण्डः शकलस्तैरेव उदुकोटीकपटं कोटिसंख्यनक्षत्रव्याजं वहद्भिर्धारयद्भिः सद्भिरिह सायंसमये दिङ्मण्डलं मण्डयति पश्य / एतानि नक्षत्राणि न, किंतु ताण्डवत्रुटिता. स्थिमालोच्छलच्छकलान्येव दिनु शोभन्त इत्यर्थः। अन्योऽपि चन्द्रतुल्यकिरीटो नृत्यंस्त्रटितहारखण्डैः स्त्रीवृन्दं मण्डयति / 'मण्डयतीव' इति पाठे-उत्प्रेक्षा // 8 // (हे प्रिये दमयन्ति !) चन्द्रमुकुट एवं सायङ्कालके नट शिवजी ( अत्यु द्धत ) नृत्य करनेसे टूटे हुए तथा करोड़ों ताराओंके कपटको धारण करनेवाले भूषणभूत अस्थिमालाके टुकड़ोंसे इस सायङ्कालमें दिक्समूहको अलङ्कृत करते हैं, देखो। [ये करोड़ों नक्षत्र नहीं है, किन्तु उद्धृत ताण्डव नृत्यमें टूटी हुई शिवजीकी भूषणभूत अस्थिमालाके टुकड़े हैं। लोकमें भी चन्द्रतुल्य मुकुट पहनकर नाचता हुआ कोई व्यक्ति टूटे हुए हारके टुकड़ोंसे स्त्री-समूहको अलंकृत करता है ] // 8 //