________________ 1480 नैषधमहाकाव्यम्। वर्णवालेका भाव ) रूपी आशय (निन्दा) को पाता ( अथच दुर्वर्ण-दुष्ट वर्णवाला कहलाना) है / [ अत एव तुम्हारे शरीरमें वर्तमान होनेसे पीला (हरिद्राके तुल्य गौर ) वर्ण ही सर्वोत्तम एवं रमणीयतम है, क्योंकि उसका संसर्ग करने वाले चम्पा ( या-सोने ) का आदर के साथ सब लोग सुवर्ण ( सुन्दर वर्णवाला, तथा 'सुवर्ण' नामवाला) कहते हैं और वर्गों के राजा श्वेत वर्णके संसर्गसे चाँदीको लोग दुर्वर्ण (बुरे वर्णवाला, अथच-'दुर्वर्ण' नामवाला) कहते हैं, इस वास्ते श्वेत भी तुम्हारी समानता नहीं कर पाता दूसरे वर्गों की चर्चा ही व्यर्थ है ] // 137 // खण्डक्षोदमृदि स्थले मधुपयःकादम्बिनीतर्पणात् कृष्टे रोहति दोहदेन पयसा पिण्डेन चेत् पुण्ड्रकः / स द्राक्षाद्रवसेचनैर्यदि फलं धत्ते तदा त्वदिगरा मुद्देशाय ततोऽप्युदेति मधुराधारस्तमप्प्रत्ययः / / 138 // खण्डेति / हे प्रिये ! मधूनि क्षौद्राणि एव, पयांसि जलानि यस्याः तादृश्याः, . कादम्बिन्याः मेघमालिकायाः, 'कादम्बिनी मेघमाला' इत्यमरः। तर्पणात् आप्यायनात् , तादृशवारिवर्षणेन अभिषिञ्चनादनन्तरमित्यर्थः। कृष्टे हलचाल नेन पुनरपि कृतकर्षणे, वर्षणानन्तरं कृषीवलाः पुनरपि क्षेत्रं कर्षन्तीति लोकदर्शनादिति भावः / खण्डस्य शर्कराविशेषस्य, क्षोदः चूर्णमेव, मृत् मृत्तिका यत्र ताशे, स्थले शस्यक्षेत्रे, पिण्डेन पाकविशेषात् पिण्डीभूतेन, घनीभूतेनेत्यर्थः, पयसा क्षीरेण एव, ‘पयसाम्' इति पाठे-पयसां पिण्डे नेत्यन्वयः। दोहदेन वृक्षादिवृद्धिकरण वस्तुना साधनेन, पुण्डूकः इविशेषः / 'रसाल इस्तद्भेदाः पुण्ड्रकान्तारकादयः' इत्यमरः। रोहति प्रभवति, चेत् यदि, सः पुण्डूकः, द्राक्षाद्रवसेचनः मृद्वीकारससेकः, यदि चेत् , फलं शस्यम् , धत्ते धारयति, तदा तर्हि, ततोऽपि तादृशेतुफलादपि, त्वद्गिरां भवद्वच. नानाम् , उद्देशाय उस्कर्षनिर्देशाय, मधुरः मधुर इति शब्दः, आधारः आश्रयः, प्रकृतिरित्यर्थः / यस्य स तादृशः, तमपप्रत्ययः मधुरतम इत्यर्थः / उदेति उत्पद्यते / सम्भाव्यमानताहशेक्षुफलादपि मधुरतमा तव वाणी इति भावः // 138 // (अब नव श्लोकों ( 21 / 138-145 ) से नल दमयन्तीके वचनमाधुर्यका वर्णन करते हैं-हे प्रिये ! ) अमृत ( या-सहद ) रूपी जलवाले मेघ-समूहसे सींचने के कारण दुबारा जोते ( दोखारे ) गये, चीनी ( शकरका चूर्ण ) रूपी मिट्टीवाले खेतमें दूधके पिण्ड ( खाये ) के खादसे पौढ़ा ( उत्तमजातीय मोटा ) गन्ना अङ्कुरित हो तथा बादमें दाखके रसोंसे बारबार सींचनेपर यदि फलको धारण करे अर्थात् फले तो तुम्हारे वचनों के उद्देश्य ( समानता) के लिए उसके 'मधुर' शब्दसे 'तम' प्रत्यय हो अर्थात् वैसे गन्नेके फलसे तुम्हारा वचन मधुरतम ( अतिशय मधुर ) कहलावे [ अन्यथा सामान्य मधुर पदार्थोकी अपेक्षा तुम्हारे वचनको मधुरतम कहना अतिशय भेद होनेसे असङ्गत है, अत एव उक्तरूप