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________________ 1470 नैषधमहाकाव्यम् / यम् , युवयोः भवतोः, तं पूर्वोक्तस्वेदादिसात्त्विकभावसूचितम् , इमं परिदृश्यमानम् रागम् अनुरागम् , प्रतीत्य ज्ञात्वा, प्रत्यक्षं दृष्ट्वेत्यर्थः / रक्तं रक्तवर्णम् अनुरक्तच, 'रक्तं स्यात् कुङ्कुमे ताने प्राचीनामलकेऽसृजि / अनुरक्ते च नील्यादिरञ्जिते लोहिते. ऽन्यवत् // इति विश्वः / अजायत किम् ? अभवत् किम ? कयोश्चित् स्त्रीपुंसयोः सम्भोगानुरागदर्शनेन अपरयोरपि स्त्रीपुंसयोः तथाविधानुरागोत्पत्तेः प्रायोदर्शनादिति भावः / दिवाविहारस्य शास्त्रनिषिद्धस्वात् अथच भैमीनलयोरत्युत्कटसम्भोगाभिला. पावलोकनात् कृपया अस्तगमनद्वारा राज्यानयनाभिप्रायेण सूर्यः किं रक्तवर्णोऽजा. यत इति तात्पर्यम् / तथा इह अस्मिन् समये, केलिसरितः तवैव क्रीडानद्याः, सरोजैः कमले, तत् प्रतीचीभानुद्वयम , वां युवाञ्च, वीक्ष्य दृष्ट्वा, अस्तगमनाय सुरतसम्भो. गाय च अभिलाषिणमवलोक्येत्यर्थः। कामेषुतायाः कन्दर्पबाणस्वस्य, उचितं योग्यम , मुखम् अग्रभागः, मुकुलितत्वेन सूचममिति भावः / येषां तेषां भावः तत्त्वम् , अधीयमानम् अभ्यस्यमानम् , किम् ? वर्तते इति शेषः / मुखस्य सूक्ष्मताया अभावे बाणस्वासङ्गतेरिति भावः / सायंकालोपस्थितेः प्रतीचीभानू अरुणवर्णों जाती, कमलच मुकुलितप्रायम् , अतः सत्वरं रात्रिरागमिष्यति, अलं वाम् उरकण्ठयेति निष्कर्षः // 125 // __तुम दोनोंके इस राग ( रमणेच्छा ) को देखकर सूर्य तथा पश्चिम दिशा रक्त ( अरुण क्रीडा-नदीके कमलसे वे ( सूर्य तथा पश्चिम दिशा ) तुम दोनोंको देखकर कामबाणत्वके योग्य मुख ( सूक्ष्म-तीक्ष्णाग्रभाग ) होने का अभ्यास करते हैं क्या ? / [नल तथा दमयन्ती रमण करना चाहते हैं, किन्तु दिनमें रमणका निषेध होनेसे ये रमण नहीं कर सकते, अतः सायङ्काल होना आवश्यक है, यह विचारकर सूर्य तथा पश्चिम दिशा लाल हो गये हैं, क्योंकि किसी दम्पतिको इच्छाको पूरा करना दूसरे दम्पतिका कर्तव्य होता है / अथच-दम्पति तुम दोनोंको रमणेच्छुक देखकर सूर्य एवं पश्चिम दिशारूपी दम्पति भी रमण करने के इच्छुक हो गये हैं क्या ? क्योंकि किन्हीं स्त्री-पुरुषको रमण करते हुए देखकर दूसरे स्त्रीपुरुषको भी कामोत्पत्ति हो जाती है / तथा-इस समय सांयकालके समीप होनेसे कमल मुकुलित हो रहे हैं, वह ऐसा ज्ञात होता है कि-कामबाणके पुष्पबाण होनेसे मुकुलित होकर तीक्ष्णाग्र ‘कामबाण होने का अभ्यास करते . हैं। कमलाग्रभागका मुकुलित होकर तीक्ष्णाय हो जाना स्वाभाविक है / अस्तोन्मुख होकर सूर्य तथा पश्चिमदिशा लाल होने लगे, कमल मुकुलित होने लगे, अतः रमणेच्छुक तुम दोनों सायङ्काल के बाद रात्रिको आसन्न जानकर धैर्य धारण करो] // 125 // अन्योऽन्यरागवशयोयुवयोर्विलासस्वच्छन्दताच्छिदपयातु तदालिवर्गः / अत्याजयन् सिचयमाजिमकारयन् वा दन्तै खैश्च मदनो मदनः कथं स्यात्।।
SR No.032782
Book TitleNaishadh Mahakavyam Uttararddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas Shastri
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1997
Total Pages922
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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