________________ एकविंशः सर्गः। 1469 रतिके लिए स्नानकर जो जागरणपूर्वक व्रत करती है, उससे भीतर प्रविष्ट हुए कामबाणों के बहिदृश्यमान पुच्छ-सम्बन्धी रोमोंसे युक्त शरीरवाला पति होता है अर्थात् व्रताचरणके प्रमावसे वह पुरुष कामबाणविद्ध हो जाता है)। [रतिके पूर्व तुम स्वेद तथा रोमाञ्च युक्त होकर आपुत मग्न कामबाणोंसे पीडित हो जाते हो] // 123 // प्राप्ता तवापि नृप ! जीवितदेवतेयं घर्माम्बुशीकरकरम्बनमम्बुजाक्षी / ते ते यथा रतिपतेः कुसुमानि बाणाः स्वेदस्तथैव किमु तस्य शरक्षतास्रम्।। प्राप्तेति / नृप ! हे राजन् ! नल! तव भवतः, जीवितस्य जीवनस्य, देवता अधिः ष्ठात्री, जीवनेश्वरीत्यर्थः / अम्बुजाक्षी कमलनयना, इयम् दमयन्ती अपि, धर्माम्बुनः स्वेदजलस्य, शीकरैः कणः, करम्बनं मिश्रणम् , प्राप्ता अधिगता, साविकभावोदयात् स्वेदप्लुताङ्गी जाता इत्यर्थः / रतिपतेः कामस्य, ते ते प्रसिद्धाः, बाणाः शोषणसम्मो, हनादयः शराः, यथा यद्वत् , कुसुमानि कमलादीनि पुष्पाणि, अभवन्निति शेषः। तथैव तद्वदेव, स्वेदः धर्मोदकम् , तस्य कामस्य, शराणां बाणानाम, पतस्य व्रणस्य, अस्त्रं रक्तम् , किमु ? तथा हि सुकुमाराणि कुसुमान्यपि यदि कामस्य शराः भवितुः मर्हन्ति, तदा स्वेदोदकमलोहितमपि तस्य शराघातनिसृतं लोहितं भवितुमर्हत्येव देवप्रभावस्य उभयत्रापि तुल्यत्वादिति भावः // 124 // हे राजन् ! तुन्हारे जीवन की देवता कमललोचना यह ( दमयन्ती ) मी धर्मजल ( स्वेद) के कणों से युक्त हो जाती है (इसे मी सात्त्विक भावजन्य स्वेद हो जाता है, अथ चदेवताको स्वेदोदय नहीं होता, किन्तु आपकी जीवनदेवता ( इस दमयन्ती) को भी स्वेद हो जाता है, यह आश्चर्य है)। तथा कामदेवके वे-वे (अतिप्रसिद्ध) बाण जिस प्रकार पुष्प हैं उसी प्रकार उस कामदेवका बाणक्षतजन्य रक्त मी वैसे ( श्वेतवर्ण ) हैं क्या ? [ देवताको स्वेद नहीं होनेपर भी जिस प्रकार तुम्हारे जीवित-देवता दमयन्तीको स्वेद होता है, पुष्पजैसे कोमलतम पदार्थको किसी भी वीरका बाग होना उचित नहीं होने पर भी जिस प्रकार कामदेवके बाण पुष्प ही हैं; उसी प्रकार बाणक्षतसे उत्पन्न रक्तको श्वेत होना उचित नहीं होनेपर भी कामदेवके बाणक्षतजन्य ( दमयन्ती के शरीरसे बहता हुआ स्वेदरूप ) रक्त यदि श्वेत वर्ण है तो कौन-सा आश्चर्य है ? क्योंकि देवोंका कार्य ही विलक्षण होता है / दमयन्ती भो कामबाण-पीडित हो जाती है, जिससे उत्पन्न सात्त्विक भावजन्य स्वेद बाणक्षतजन्य श्वेतवर्ण रक्त के समान ज्ञात होता है। अथवा-दमयन्तीके अरुणवर्ण कर, चरण, पाणि, मुख आदि के सम्बन्ध से स्वेद भी अरुणवर्ण होकर काम-बाण-क्षतजन्य रक्तके समान ज्ञात होता है ] / / 124 // रागं प्रतीत्य युवयोस्तमिमं प्रतीची भानुश्च किं द्वयमजायत रक्तमेतत् ? तद्वीक्ष्य वां किमिह केलिसरित्सरोजैः कामेषुतोचितमुखत्वमधीयमानम् ? // रागमिति / हे राजन् ! प्रतीची पश्चिमा दिक् , भानुः सूर्यश्च, एतत् द्वयम् उभ