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________________ 1466 नैषधमहाकाव्यम् / अथवा-साक्षीकृतं साक्षाद् द्रष्ट्रीकृतम्, इन्दुवदनं स्वस्याः चन्द्रसुन्दरमुखं यया सा, नलस्य कामविजितत्वे भैग्याः मुखचन्द्र एव साक्षी इति भावः / इयं पुरतः दृश्य. माना, तन्वी कृशाङ्गी, दमयन्तीति शेषः। अन्यत्र-काचित् सूचमा विचारप्रणाली च, मदनाय कामाय, जयं विजयम्, दत्ते अर्पयति, मदनेन त्वां विजितं करोतीत्यर्थः / अन्यत्र-स्वविषये नलकामयोः विवादे कामायैव विजयम्, दत्ते अर्पयति, भैमीविषये कामः नलं जितवान् इत्यर्थः / तथाऽपि भर्सितः तिरस्कृतः, रूपेण धिक्कृतः इत्यर्थः। अन्यत्र-बलात् सन्तर्जितश्च, मत्स्यकेतुः मीनध्वजः मदनः येन तादृशस्य, तव भवतः, अत्र अस्यां दमयन्त्याम, पक्षे-भुवि च, यत् भुक्तिः सुरतसम्भोगः, अन्यत्रप्रतिपक्षात् बलपूर्वकं गृहीत्वा स्वयमुपभोगश्च, तदेतत्, मध्यस्थं कटिदेशस्थम, यत् दुर्बलतमत्वं कृशतया अत्यन्तहीनबलत्वम्, अत एव सम्भोगक्रियासु सुखकरत्वमिति भावः / तस्य, अन्यत्र-मध्यस्थानां विचारकाणाम, दुर्बलतमत्वस्य बाधाप्रदाने अक्षमतया चित्तदौर्बल्यस्य, फलं परिणामः, किम् ? दमयन्याः मध्यावयवस्य अति. सूक्ष्मत्वेन परमरमणीयत्वमेव अतिसुन्दरस्य तव भोगप्रयोजकम, अन्यथा पराजित तोऽपि भवान् कथमिमां विवादभूमि भोक्तुं शक्नोति ? इति भावः / अन्यत्रजयपत्रे साक्षिषु च सत्स्वपि विजयिनः विषये अन्येन बलपूर्वकं विजयिनं तिरस्कृत्य या भुक्तिः तत्र सभ्यानां चित्तदौर्बल्यमेव कारणमिति भावः // 120 // (हे राजन् ! ), सखियोंसे स्तन-कपोलोंपर चन्दनकस्तूर्यादिरचित मकरादि चिह्नोंवाली, सनेत्र किये गये चन्द्ररूप मुखवाली अर्थात् चन्द्रसे अधिक सुन्दर मुखवाली और कृशाङ्गी यह ( दमयन्ती) कामके लिये विजय देती है अर्थात् 'तुमने नलको जीत लिया है। ऐसा प्रमाणित करती है, परन्तु कामदेवको शरीरकान्तिसे धिक्कृत करनेवाले तुम इसके विषयमें भोग करते हो अर्थात् इस दमयन्तीके साथ रति करते हो यह ( इस दमयन्तीके ) मध्यभाग ( कटिप्रदेश ) के दुर्बल (कृश, पक्षा-निर्बल ) होनेका परिणाम है क्या ? अर्थात् दमयन्तीके कटिभागको अत्यन्त कृशताके कारण सुन्दर होनेसे तुम इस दमयन्तीके साथ भोग करते हो क्या ? / ( पक्षा-जिसने विजयपत्र दे दिया है और चन्द्रमुखियों ( चन्द्रमुखी सखियों) को साक्षी बनाया है, ऐसी तन्वी दमयन्तीने कामको तुम्हारा विजयी घोषित कर दिया है, किन्तु फिर भी तुम उस ( कामदेव ) को फटकार कर इस ( दमयन्ती शरीर, पक्षा०-विवादस्थ भूमि ) का उपभोग कर रहे हो, यह मध्यस्थ (निर्णायक ) की दुर्बलताका फल है क्या ?) [जिस प्रकार दो व्यक्तियों में विवाद होनेपर किसीको साक्षी बनाकर निर्णायक व्यक्ति एक पक्षको विजयपत्र दे देता है, तथापि निर्णायक व्यक्तिके दुर्बल होनेका लाभ उठाकर पराजित पक्षवाला व्यक्ति विजयी व्यक्तिको फटकारकर उसके भूमि आदिका उपभोग करने लगता है, उसी प्रकार हे राजन् ! तुम भी भोगविषयमें चन्द्रमुखी सखियोंको साक्षी बनाकर कामदेवको विजयी घोषित करनेपर भी तुम कृशतासे सुन्दरतम इस ( दमयन्ती ) की कटिका कामकी शरीर कान्तिसे भत्सितकर भोग रहे हो ] // .
SR No.032782
Book TitleNaishadh Mahakavyam Uttararddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas Shastri
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1997
Total Pages922
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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