________________ एकविशः सर्गः। 1441 ( अब दत्तात्रेयकी स्तुति करते हैं-) मैं अद्वैतमार्गमें वर्तमान, सहस्रार्जुन (कार्तवीर्य) के यशःप्राप्ति ( पाठा-स्वच्छ यशवाले सहस्रार्जुन ) के कारण, ( अष्टाङ्ग) योगसे 'अनघ' संज्ञाको प्राप्त करनेवाले और 'अलर्क' राजाके संसारमोहरूपी अन्धकारके सूर्य (संसारमोहको नष्ट करनेवाले ) दत्तात्रेय तुमको नमस्कार करता हूं // 12 // पौराणिक कथा-१. दत्तात्रेयकी आराधना करनेसे कार्तवीर्यने संसारव्यापि निर्मल यश पाया था / 2. दत्तात्रेयके अष्टाङ्ग योगको देखकर अधिक योग होनेसे देवोंने दत्तात्रेयका दूसरा नाम 'अनघ' रखा। 3. अलर्क नामक राजाको सांसारिक मोह हुआ तो दत्तात्रेयने ही उपदेश देकर उसे दूर किया। ___ (इस प्रकार मत्स्यादि अवतारों की स्तुति करने के बाद अधिक भक्तिमान् नल पुनः उन्हीं में से कुछ अवतारोंकी स्तुति करते हैं )-सूर्यपुत्र ( सुग्रीव) को (बालिवध, बालिके द्वारा अपहृत ताराका पुनः प्रत्यर्पण एवं राज्याभिषेकसे ) अनुगृहीतकर रामावतार में इन्द्रपुत्र ( बालि ) को मारनेवाले तुम विजयी होवो तथा हे कृष्ण ! इन्द्रपुत्र (अर्जुन ) के मित्र होते हुए भी सूर्यपुत्र (कर्ण) को मरवानेवाले तुमको नमस्कार है। [इन्द्रपुत्रका सपक्ष ( मित्र) इन्द्रपुत्रको तथा सूर्यपुत्रको अनुगृहीत करनेवाला सूर्यपुत्रको कैसे मारेगा ? इस विरोधद्वयका परिहार ( निवारण) राम तथा कृष्णके अवतार भेदसे करना चाहिये। इस प्रकार अद्भुतचरित करनेवाले आपको नमस्कार है ] // 13 // ___ अत्यन्त छोटे वामन शरीरके बाद त्रिविक्रम-शरीरसे दिशाओंको व्याप्त करनेवाले तुम विजयी होवो तथा हिंसाकी चर्चासे भी बिरत बुद्धके बाद कल्कि अवतारसे समस्त (पापी) प्राणियोंको मारनेवाले तुमको नमस्कार है। [ यहां भी अत्यन्त छोटे शरीरवाले का समस्त दिशाओंको व्याप्त होना, हिंसाकी चर्चासे भी विरत रहनेवालेका समस्त प्राणियों को मारना अत्यन्त विरुद्ध होनेसे उक्त अवतार भेदसे परिहार करना चाहिये / इससे भगवान्का अतिशय दुर्बोध होना सूचित होता है ] // 14 // हे त्रिविक्रम ! मुझे पवित्र (पापरहित ) करो, (आकाशको मापते समय ) तुम्हारे चरणमें लगा हुआ राहु जूता नहीं हो गया था क्या ? ( बलि से तीनपद भूमिको दानरूपमें प्राप्तकर जब तुम आकाशको एक पादसे मापने लगे, तब तुम्हारे चरणके समीपमें स्थित राहु कृष्णवर्ण होनेसे जूतेके समान मालूम पड़ता था)। और प्रदक्षिणा करता हुआ जाम्बवान् नामक ऋक्षराजने तुम्हारे लिये बलिको बाँधने में ( पाठा०-बलिको बाँधनेवाले तुम्हारे लिए) लपेटकर बांधनेवाली रस्सी दे दी क्या ? / [ यद्यपि वामन भगवान्ने बलिको केवल वचनबद्ध ही किया था; रज्जु आदिसे बद्ध नहीं किया था; तथापि बिद्ध हुआ' इस लोकोपचारसे यहां पाश ( बांधनेको रस्सी) का वर्णन समझना चाहिये / वामनावतारमें ब्रह्माके अवतार जाम्बवान्ने वामन भगवान्का षोडशोपचारसे पूजन किया था, अत एव षोडशोपचारान्तर्गत प्रदक्षिणका वर्णन.यहां किया गया है ] // 15 //