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________________ एकविंशः सर्गः। तं विदर्भरमणीमणिसौधादुजिहानमनुदर्शितसेवैः / अर्पणानिजकरस्य नरेन्द्ररात्मनः करदता पुनरूचे / / 1 // तमिति / विदर्भरमण्या वैदा दमयन्त्याः , मणिसौधाद् रत्नमयप्रासादात्, उजिहानं निर्गच्छन्तम्, तं नलम्, अनु प्रति, तं लक्ष्यीकृत्य इत्यर्थः। दर्शितसेवैः दर्शिता अन्तःपुरद्वारि प्रणामादिना विज्ञापिता, सेवा आराधना, आनुगत्यमित्यर्थः, यैः तैः। अनोलक्षणार्थे कर्मप्रवचनीयत्वात्तधोगे द्वितीया। नरेन्द्रः अधीनराजन्य. वर्गः, निजकरस्य स्वस्वहस्तस्य, अर्पणात् दानात् , सोपानावतरणसमये नलाय हस्तावलम्बनदानादित्यर्थः / आत्मनः स्वस्य, करं हस्तं बलिं च ददातीति करदः। 'बलिहस्तांशवः कराः' इत्यमरः / तस्य भावः तत्ता, पुनः भूयोऽपि, बलिदानादेव करदत्वे सिद्धे पुनर्हस्तदानेन करदता इति पुनरुक्तिरिति भावः / ऊचे बभाषे / एतेन नलस्य चक्रवर्तित्वं द्योत्यते // 1 // विदर्भदेशकी रमणी ( दमयन्ती) के मणिमय प्रसादसे निकलते हुए उस ( नल) के प्रति ( प्रणामादिके द्वारा ) सेवा प्रदर्शित किये हुए राजाओंने अपने हाथ ( पक्षा०–राजदेय माग ) के देने से अपने करदातृत्व ( हाथ पक्षा०-कर = राजदेय भागको देनेके भाव) को पुनः कह दिया / [ सभी राजालोग पहलेसे सार्वभौम नलके लिए कर देते थे, वे इस समय प्रासादसे बाहर जाते हुए नलके सीढ़ियोंसे उतरते समय अपने हाथका सहारा देकर उस करदातृत्वको मानो पुनः कहा ] // 1 // तस्य चीनसिचयैरपि बद्धा पद्धतिः पदयुगात् कठिनेति / तां प्यधत्त शिरसां खलु माल्यै राजराजिरभितः प्रणमन्ती / / 2 / / तस्येति / राजराजिः सामन्तनृपपङक्तिः, अभितः समन्तात् , प्रणमन्ती आभूमि शिरो नमयन्ती सती, चीनसिचयः चीनदेशीयपट्टवस्त्रैः, बद्धा आच्छादिता अपि, पद्धतिः मार्गः, तस्य नलस्य, पदयुगात् चरणयुगलात , कठिना कठोरा, इति हेतोः। 'पञ्चमी विभक्तेः' इति पञ्चमी / तां पद्धतिम् , शिरसा मूर्नाम् , माल्यैः मालाभिः साधनैः, प्यधत्त पिहितवती, खलु इति उत्प्रेक्षायाम् / पदयुगलादपि भूमेः कठिनत्वात् तत्र पदविन्यासे वेदनाप्राप्तिसम्भवादिति भावः॥२॥ चीन देशोत्पन्न मृदु तथा सूक्ष्म वस्त्रसे आच्छादित भी मार्ग उस ( नल ) के चरणद्वयसे कठोर हैं ( अत एव इनको उस पर चलनेमें सम्भावित कष्टको दूर निवारण न होने के लिए मार्गके दोनों ओरसे प्रणाम राजश्रेणि-पतिबद्ध राज-समूह ) ने मस्तकोंकी मालाओंसे उस (मार्ग) को आच्छादित कर दिया। [कोमल नलके चरणोंको कठिन मार्गमें गमन करने में कष्ट होने की सम्भावनासे राजाओंका अपनी मस्तकस्थ मुकुटमालाओंसे उस मार्गको मृदुतम
SR No.032782
Book TitleNaishadh Mahakavyam Uttararddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas Shastri
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1997
Total Pages922
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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