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________________ 1380 नैषधमहाकाव्यम् / द्राक् झटिति, निर्गतायाः निष्क्रान्तायाः, प्रेयस्याः, प्रियतमाया भैम्याः, प्रत्यावृत्तिधिया पुनरागमनबुद्धया, पक्षद्वारदिशं प्रतिपार्श्ववत्तिकपाटप्रदेशमुद्दिश्य, तेनैव द्वारेण प्रत्यागमनसम्भवादिति भावः / प्रतिमुहुः पुनः पुनः, दृशं दृष्टिम् , दिशन् व्यापारयन् , हठं बलपूर्वकं यथा तथा, स्वत एव आनन्दलाभासम्भवादिति भावः। आनन्दं प्रेयसीसमागमहर्षम् , आहरन् इव परावर्तयन् इव, निर्गन्तुं गृहात् निर्या. तुम उत्तस्थिवान् शय्यातः उजगाम // 160 // शिव- पूजनके समय ( मध्याह्न, अथवा-शिव-पूजनरूपी उत्सव ) के समीप होनेपर भी बलात्कारपूर्वक गये ( बीते ) हुए भी आनन्दको मानो आकृष्ट करते हुए तथा परमप्रिया ( दमयन्ती ) के वियोगजन्य खिन्नतासे आलस और तत्काल निकली (बाहर गयी) हुई प्रियतमाके लौटने के कारण सामीप्य होनेकी बुद्धि ( दमयन्ती लौटकर इधर आ तो नहीं रही है इस विचार ) से द्वारकी ओर दृष्टि डालते हुए ये राजा नल बाहर जाने के लिए पलङ्गसे उठे / [ यहांपर कविसम्राट् श्रीहर्षने चार श्लोकों ( 20157-160) से अग्रिम सर्गकी सङ्गति सूचित कर दी है ] // 160 // श्रीहर्ष कविराजराजिमुकुटालङ्कारहीरः सुतं श्रीहीरः सुषुवे जितेन्द्रियचयं मामल्लदेवी च यम् / अन्याक्षुण्णरसप्रमेयभणितौ विंशस्तदीये महा. काव्येऽयं व्यगलनलस्य चरिते सो निसोज्ज्वलः / / 161 / / श्रीहर्षमिति / अन्यैः अपरैः, अक्षुण्णाः अस्पृष्टाः, पूर्वम् अनालोचिता इत्यर्थः / रसाः शृङ्गारादयः, प्रमेयाः वाक्यार्थाश्रयाः, यासु भणितिषु वाक्येषु तस्मिन् / 'तृती. यादिषु भाषितपुंस्कं पुंवत्' इत्यादिना पुंवद्भावः' / तदीये श्रीहर्षकृते, महाकाव्ये। विंशतीति पूरणे डटि, 'ति विंशतेः' इति शब्दस्य लोपः। गतमन्यत् // 161 // इति मल्लिनाथसूरिविरचिते 'जीवातु'समाख्याने विंशः सर्गः समाप्तः // 20 // कवीश्वर-समूहके............."क्रिया, उसके रचित दूसरे (श्रीहर्षभिन्न कवियों ) से अनभ्यस्त शृङ्गारादि रसके प्रमेयों ( वक्रोक्ति, समासोक्ति, उत्प्रेक्षा आदि ) के कथन ( यागुम्फन ) वाले सुन्दर 'नल-चरित' अर्थात् 'नैषध चरित' का........."यह बीसवां सर्ग समाप्त हुआ। ( शेष व्याख्या चतुर्थ सर्गदत समझनी चाहिये ) // 161 / / यह 'मणिप्रभा टीकामें 'नैषधचरित'का बीसवां सर्ग समाप्त हुआ // 20 // 1. 'भणिती, भाषितपुंस्कम्' इति 'प्रकाश' व्याख्यानं चिन्त्यम् , तस्य नित्यस्त्रीत्वात्।
SR No.032782
Book TitleNaishadh Mahakavyam Uttararddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas Shastri
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1997
Total Pages922
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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