________________ 1376 नैषधमहाकाव्यम् / नन्तर स्तनतटको प्राप्त किया और तदनन्तर सघन जधनको प्राप्त किया अर्थात् नलने पहले दमयन्तीके मुखकमलको, तदनन्तर स्तनतटको तदनन्तर परस्परमें आश्लिष्ट जघनको देखा / [ यहाँपर मुखादिके साथ 'अम्बुज, तट तथा घन' शब्दका प्रयोग करनेसे उनकी दर्शनीयता सूचित होती है ] // 151 // इत्यधीरतया तस्य हठवृत्तिविशङ्किनी / झटित्युत्थाय सोत्कण्ठमसावन्वसरत् सखीः / / 152 / / इतीति / इति उक्तप्रकारया, तस्य स्वप्रियस्य नलस्य, अधीरतया कामजचाच. ल्येन हेतुना, हठवृत्तिं बलात्कारप्रवृत्तिम्, विशङ्कते सम्भावयतीति सा तादृशी, असौ भैमी, झटिति सहसा, उत्थाय उद्गग्य, नलवक्षोदेशादिति भावः। सोत्कण्ठं सोत्क. लिकम्, त्वरितप्रस्थानार्थमुत्सुका सतीत्यर्थः / सखीः वयस्याः, अन्वसरत् अन्वगच्छत् // 152 // इस प्रकार ( 20 / 150-151) उस ( नल) को अधीरतासे ( सुरतार्थ) बलात्कार करनेकी आशङ्का करती हुई वह ( दमयन्ती) बहुत शीघ्र (पङ्क, या-नलके वक्षःस्थल ) से उठकर उत्कण्ठा सहित हो सखियों के पीछे चली / [ अत्यन्त रसासक्त होना दोषोत्पादक है तथा रसका त्याग भी नायकके नीरसताका उत्पादक है; अत एव यहांपर कविसम्राट श्रीहर्षने रसान्तरका वर्णनकर सम्भोग शृङ्गारको चरमसीमा तक पहुँचाने के लिए दमयन्ती तथा नलको भिन्न स्थानमें पहुंचाने का उपक्रम किया है ] // 152 / / न्यवारीव यथाशक्ति स्पन्दं मन्दं वितन्वता / भैमी कुचनितम्बेन नलसम्भोगलोभिना / / 153 // न्यवारीवेति / भैमी दमयन्ती, नलस्य नैषधस्य, सम्भोगलोभिना मर्दनस्पर्शना. दिरूपसम्भोगलालसेन, कुचनितम्बेन स्तनद्वयेन जघनयुग्मेन च / प्राण्यङ्गत्वादेका वद्भावः / अत एव स्पन्दं भैम्या एव गमनम्, मन्दं मन्थरम्, स्वल्पीभूतमित्यर्थः / वितन्वता कुर्वता सता, गति प्रतिबध्नता इत्यर्थः। आत्मनोरतिपीनत्वेन गुरुभार. त्वादिति भावः / यथाशक्ति सामर्थ्यानुसारेण, न्यवारीव निवारिता, सम्भोगप्रति. बन्धात् खिन्नेन सता अलब्धभोगा मा गच्छ इति न्यषेधीव इत्युत्प्रेक्षा // 153 // ___ नल के साथ सम्भोग करनेके लिए लोभी ( अत एव अधिक भारयुक्त होनेसे दमयन्ती के) गतिको मन्द करनेवाले स्तनों तथा नितम्बोंने यथाशक्ति मानो दमयन्तीको ( नलको छोड़कर जानेमें ) निषेध-सा किया। [ स्तनों तथा नितम्बोंके बड़े-बड़े होनेसे दमयन्ती उत्कण्ठान्वित होती हुई भी शीघ्रगतिसे नहीं जा सकी ] // 153 / / अपि श्रोणिभैरस्वैरां धत्तु तामशकन्न सः।। तदङ्गसङ्गजस्तम्भो गजस्तम्भोरुदोरपि // 154 // 1. '-भरास्वैराम्' इति पाठान्तरम् /