________________ विशः सर्गः। 1375 किन्तु चिबुकादि देशमें ही 'चुकृति' पूर्वक चुम्बन-सुखका अनुभव कर कथञ्चित् सन्तोष किया; इससे नलका परम धार्मिक होना सूचित होता है / 'प्रकाश'कारके अनुसार'अतिशय रमण करनेका इच्छुक होनेसे चिबुकादि स्थानोंमें दन्तक्षत करके 'चिबुकादि देशसे अधर देशतक जाने के अल्पतम विलम्बको भी असहिष्णु होनेसे, अथवा-चिबुकादि स्थानमें ही अधरका भ्रम होनेसे नलने वहींपर (चिबुकादि देशमें ही ) चुम्बन-सुखका अनुभव किया ऐसा अर्थ होता है। इस अर्थको स्वीकार करनेपर भी 'आत्मवित्सह तया( 18 / 2 )' के अनुसार आत्मज्ञानी नलको शास्त्रविरुद्धाचरण करनेका दोष नहीं होता, यह समझना चाहिये // 149 / / / न क्षमे चपलापाङ्गि ! सोढुं स्मरशरव्यथाम / तत् प्रसीद प्रसीदेति स तां प्रीतामकोपयत् / / 150 // अथास्य कालक्षेपरवलक्षणमौत्सुक्यमेव श्लोकद्वयेनाह-नेत्यादि / चपलापाङ्गि ! हे चञ्चलाक्षि ! स्मरशरैः कामबाणैः, या व्यथा वेदना तां तत्कृतां पीडाम् , सोलु क्षन्तुम् , न क्षमे न शक्नोमि / तत् तस्मात् , प्रसीद प्रसीद प्रसन्ना भव प्रसन्ना भव, सुरताय सदया भव इति भावः / इत्येवमुक्त्वा, सः नलः, प्रीतां परिहासादिभिः प्रियवाक्यशतेन च मुदिताम् अपि, तां प्रियाम्, अकोपयत् अक्रोधयत् , दिवा मथुनस्य निषिद्धत्वात् तत्प्रार्थनया कोपः इति बोध्यम् , ताहशभावश्च कालक्षेपायव इत्यपि मन्तव्यम् // 150 // 'हे चपल नेत्रोंवाली ( दमयन्ती ) ! कामबाणकी पीडाको नहीं सह सकता हूँ, इस कारणसे प्रसन्न होवो, प्रसन्न होवो अर्थात् अतिशीघ्र प्रसन्न होकर रमण करो' ऐसा कहकर नलने ( पूर्वकृत परिहासादिसे ) प्रसन्न की गयी भी उस ( प्रिया दमयन्ती) को पुनः क्रुद्ध कर दिया। [दिनमें रमण करने का निषेध होनेसे नलके आतुर होकर प्रार्थना करनेपर दमयन्ती क्रुद्ध हो गयी / समय-यापन के लिए ही चतुर नलने प्रसन्न प्रियाको भी पुनः क्रुद्ध कर दिया, यह समझना चाहिये ] // 150 / / नेत्रे निषधनाथस्य प्रियाया वदनाम्बुजम् | ततस्स्तनतटौ ताभ्यां जघनं घनमीयतुः / / 151 / / नेत्रे इति / निषधनाथस्य नलस्य, नेत्रे दृशौ, 'प्रियायाः कान्तायाः, वदनाम्बुजं मुखकमलम्, ईयतुः प्रापतुः, ततः वदनाम्बुजात् , स्तनतटौ कुचोत्सङ्गभागौ, ईयतुः, ताभ्यां स्तनतटाभ्यां समीपात् , घनं निबिडम्, जघनं नितम्बम, ईयतुः। अतीव कामपीडितत्वादिति सर्वत्र भावः / अत्र नेत्रयोः क्रमात् अनेकस्थानसंवादात् 'क्रमणकमनेकस्मिन्' इत्याद्यक्तलक्षणपर्यायालङ्कारः // 151 // नलके दोनों नेत्रोंने ( पहले ) प्रिया ( दमयन्ती ) के मुख कमलको प्राप्त किया, तद१.'-व्यताम्' इति पाठान्तरम् /