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________________ 1374 नैषधमहाकाव्यम् / वस्त्र ( पक्षा०-कोई सौभाग्यशाली पुरुष ) तुम्हारे नितम्बों एवं ऊरुओंका जो स्पर्श ( पक्षा०-चुम्बन ) करता है तथा स्तनोंका आलिङ्गन करता है; वह शुभ दशा (किनाराकपड़ेकी धारी अर्थात् कोर, पक्षा०-ज्योतिःशास्त्रप्रसिद्ध पूर्व पुण्य प्राप्त ग्रहावस्था ) के योग्य भोगता ( स्पर्श करता, पक्षा०-भोगरूप सुख पाता ) है। [गुणवान्को ही तुम्हारे नितम्ब तथा ऊरुका स्पर्श एवं स्तनोंका आलिङ्गन प्राप्त होता है; अत एव यह वस्त्र धन्य है, जिते तुमने पहना है ] // 147 // लीनचीनांशुकं स्वेदि दरालोक्यं विलोकयन् | __ तन्नितम्बं स निःश्वस्य निनिन्द दिनदीघताम् // 148 // लीनेति / सः नलः, स्वेदि सात्विकोदयात् घक्तिम् , अत एव लीनं नितम्बेन सह एकीभूतभावेन संलग्नम् , चीनांशुकं सूक्ष्मवस्त्रविशेषो यत्र तादृशम् , अत एव दरालोक्यम् ईषल्लक्ष्यम, तस्याः भैम्याः, नितम्बं श्रोणोदेशम् , विलोकयन् पश्यन् , निःश्वस्य दीर्घ श्वासवायुं त्यजन् , इति विषादानुभवोक्तिः, दिनस्य दिवसस्य, दीर्घताम् अधिककालं व्याप्य स्थायिताम् , निनिन्द गर्हयामास / दिवा सुरतनिषे. धात् तत्करणाक्षमस्वाद् विषादं प्राप दिवावसानमभिललाष च इति भावः // 148 // ( सात्त्विक भावका उदय होनेसे ) स्वेदयुक्त, चिपके हुए महीन वस्त्रवाले तथा कुछ दिखलायी पड़ने योग्य उस ( दमयन्ती ) के नितम्बको देखकर उस ( नल ) ने लम्बा श्वास लेकर दिनके बड़े होनेकी निन्दा की / [ दिनमें मैथुन करनेका निषेध होनेसे नलने लम्बा श्वास लिया और दिनको बड़े होनेकी निन्दा करते हुए उसका शीघ्र अन्त चाहा ] // 148 / / देशमेव ददंशासौ प्रियादन्तच्छदान्तिकम् / चकाराधरपानस्य तत्रैवालीकचापलम् / / 146 // देशमिति / असौ नलः, प्रियादन्तच्छदस्य भैम्याः अधरस्य, अन्तिकं समीपव. तिनम् , देशं स्थानमेघ, चिबुकमेवेत्यर्थः / ददंश दृष्टवान् , तथा तत्रैव दष्टदेशे एव, अधरपानस्य निम्नौष्ठचुम्बनस्य, अलोकचापलं मिथ्याचपलताम् , निरर्थकप्रयास. मित्यर्थः / चुम्बनशब्दतुल्यं शब्दमिति भावः / चकार विदधे / चुम्बनस्य रत्युद्दीप. कत्वात् रमणाङ्गत्वाच्च दिवा च रमणनिषेधात् तथा 'रतिकाले मुखं स्त्रीणां शुद्धः माखेटके शुनाम्' इति स्मृत्या तस्य कालान्तरे अशुद्धत्वाच्च न तु अधरं चुचुम्ब इति भावः // 149 // ____ इस ( नल ) ने प्रिया ( दमयन्ती ) के अधरके समीपदेश ( चिबुक, कपोल आदि ) में ही दन्तक्षत किया और वहींपर ( उन्हीं चिबुक कपोलादि स्थानों में ) चुम्बनका मिथ्या प्रयास किया / [ चुम्बनको रत्युद्दीपक होनेसे रमणका अङ्ग होनेके कारण नलने रमणकाल (रात्रिमें रमण करते समय ) में ही स्त्रियोंका मुख शुद्ध तथा कालान्तर (रमणमिन्न-समय अर्थात् दिन ) में अपवित्र होनेसे अतिशय रमणेच्छुक होनेपर भी अधर चुम्बन नहीं किया,
SR No.032782
Book TitleNaishadh Mahakavyam Uttararddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas Shastri
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1997
Total Pages922
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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