________________ 1370 नैषधमहाकाव्यम् / अथवा-अत एव तुम्हें मी सम्भोगार्थ लज्जाका त्याग कर देना चाहिये। अथवा- ऐसी ('कला' तथा उसकी सखीके समान ) अश्लीलभाषिणी एवं निर्लज्ज कोई भी सखी थोड़ी (कहीं ) मी नहीं है अर्थात् इन दोनों के समान अश्लीलभाषिणी एवं निर्लज्ज सखी मैंने कहीं भी नहीं देखा है ) // 139 // अहो ! नापत्रपाकं ते जातरूपमिदं मुखम् / नातितापार्जनेऽपि स्यादितो दुर्वर्णनिर्गमः / / 140 / / अहो इति / जातरूपं जातं सम्भूतम् , रूपं सौन्दर्य यस्य तादृशम् , सम्पन्न सौन्दर्यम् , स्वर्णसदृशमित्यर्थः / सुवर्ण च / 'सुवर्णश्चामीकरं जातरूपम्' इत्यमरः / इदं दृश्यमानम् , ते तव, मुखं वदनम् , अपगता दूरीभूता, पा लज्जा यस्मात् तत् अपत्रपम् / शैषिकः कप्प्रत्ययः। तत् न भवतीति नापत्रपाकं सलज्जमिति यावत् / नञर्थेन न-शब्देन समासः। दृश्यते इति शेषः। 'लज्जा रूपं कुलस्त्रीणाम्' इति नीतिशास्त्रात् सलज्ज ते वदनम् अतीव रमणीयदर्शनं जातमिति निष्कर्षः / अन्यत्र-पत्रस्य पत्रोकृतस्य, कण्टकवेधयोग्यतनूकारितस्येत्यर्थः / यद्वा-पत्रे पात्रविशेषे इत्यर्थः / द्रवीकरणार्थ मृद्भाजनविशेषे इति यावत् / पाकः दग्धीकरणं द्रवीकरणं वा, विशुद्धितासम्पादनाय इति भावः। पत्रपाकः तद्रहितम् अपत्रपाकं न भवतीति नापत्रपाकं पत्रपाकविशुद्धमेवेत्यर्थः / अतितापार्जनेऽपि सखीकृतपरिहासजनितलज्जानिबन्धनपीडाप्राप्तावपि, अत्यन्त दाहकरणेऽपि च, इतः अस्मात् , शोभनवर्णयुक्तात् मुखात् , सुवर्णाच्च, दुर्वर्णनिर्गमः कर्कशवचननिर्गमः, श्यामिकानि. गमश्च, न स्यादिति विरोधः, अत एव अहो! आश्चर्यम् !, सखीकृतप्रबलदुःखोत्या. तेऽपि मुखात् दुरक्षरनिर्गमनं न स्यादिति चित्रमिति विरोधपरिहारात् विरोधाभासोऽलङ्कारः॥ 140 // ( नलने दमयन्तीसे कहा हे दमयन्ति !) सौन्दर्य-सम्पन्न ( जातरूप = सुवर्ण और सुवर्ण सदृश ) यह ( दिखाई पड़नेवाला ) तुम्हारा मुख नापत्रपाकं-लज्जा से रहित नहीं है अर्थात् 'लज्जारूपं कुलस्त्रीणां' इस नीतिशास्त्र के अनुसार सलज तुम्हारा मुख अति रमणीय दीख रहा है / ( सुवर्णपक्षमें नापत्रपाकं अर्थात् पीटकर कण्टक-वेध-योग्य पतला किया गया सुवणे का भस्मीकरण अथवा पत्र-पात्र-विशेषमें द्रवीकरणसे रहित अर्थात् पत्रपाकसे विशुद्ध ही है। ) सखियों द्वारा किये गये परिहास से उत्पन्न अतिताप (मनकी पीड़ा ) के प्राप्त होनेपर भी ( सुवर्णपक्षमें अतितापार्जनेऽपि अत्यन्त तपाने पर भी ) इस सुन्दर वर्णयुक्त तुम्हारे मुखसे दुर्वर्णनिर्गम कठोर वचन नहीं निकल रहा है (सुवर्णपक्षमें सुवर्णसे कालापन नहीं निकल रहा है ) यह आश्चर्य है / सखियोंके परिहाससे प्रवल दुःखके उत्पन्न होनेपर तुम्हारे मुखसे कठोर वचन नहीं निकल रहा है यह आश्चर्य है इस विरोधके परिहारसे यहां विरोधाभास अलंकार है / / 140 //