________________ 1368 नैषधमहाकाव्यम् / विषय ) में असत्यरूपी स्याहीके लेश ( कुछ बूंदों) से भी कलङ्कको लिखने के लिए कौन व्यक्ति ( या-कौन शत्रु ) निपुण नहीं होते / [ जिस प्रकार जलादिसे स्वच्छ किये गये पटको स्याहीकी थोड़ी बूंदोंसे भी काला करनेके लिये सभी शत्रु निपुण बन सकते हैं, उसी प्रकार यशःसमूह मेरे चरितको थोड़ा असत्य कहकर कौन कलङ्कित नहीं कर सकता ? अर्थात् सभी कर सकते हैं, अत एव सम्भव है कि विरोधिनी होने से ये भी मेरे शुभ्र आचरणको असत्यमाषणद्वारा दूषित करना चाहें, किन्तु तुम लोगों को उसपर विश्वास नहीं करना चाहिये ] // 135 // ते सख्यावाचचक्षाते न किश्चिद् ब्रूवहे बहु / वक्ष्यावस्तत्परं यस्मै सर्वा निर्वासिता वयम् / / 136 / / ते इति / ते सख्यौ कला तद्वयस्या च, आचचक्षाते चतुः; किमिति ? बहु भूरि, किञ्चित् किमपि, न ब्रूवहे न कथयावः, आवामिति शेषः / परं केवलम्, तत् तत्प्रयोजनमात्रमेव, वच्यावः कथयिष्यावः, यस्मै यत्प्रयोजनाय, वयं सर्वाः समस्ताः सख्यः, निर्वासिताः निष्कासिताः, गृहादिति शेषः / सुरतार्थम् एव युवाभ्यां वयं सर्वा एव निष्कासिता इत्येवं सर्वत्र वदिष्यावः, नान्यत् किञ्चनेति तात्पर्यम् // 36 // ___ उन दोनों सखियों ( 'कला' तथा उसकी सखी ) ने कहा-'हम दोनों अधिक कुछ नहीं कहेंगी, किन्तु उसीको कहेंगी, जिसके लिए हम सबोंको ( तुमने ) बाहर निकाला है। अर्थात् तुमने हम सबोंको सुरत करनेके लिए बाहर निकाल दिया है, इसी बातको हम सर्वत्र कहेंगी और कुछ नहीं कहेंगी' // 136 // स्थापत्यैर्न स्म वित्तस्ते वर्षीयस्त्वचलत्करैः / कृतामपि तथावाचि करकम्पेन वारणाम् / / 137 / / स्थापत्यैरिति / ते कलातत्सख्यौ, वर्षीयस्त्वेन वृद्धत्वेन हेतुना / 'प्रियस्थिर-' इत्यादिना वृद्धशब्दस्य ईयसुनि वर्षादेशः। चलस्करैः स्वभावत एव कम्प्रहस्तैः, स्थानां दाराणां पतयः पालकाः स्थपतयः, ते एव स्थापत्याः कन्चुकिनः तैः / 'सौवि. दल्लाः कञ्चकिनः स्थापत्याः' इत्यमरः / करकम्पेन हस्तचालनेन, कृतामपि विहिता. मपि, तथावाचि ताशवाक्यप्रयोगे, वारणां निवारणम्, न वित्तः स्म न बुध्येते स्म / वारणाय कृते करकम्पे जराजन्यकम्पभ्रमादिति भावः // 137 // ____ उन दोनों ( कला तथा उसकी सखी ) ने बुढ़ापेसे कांपते हुए हाथोंवाले कञ्चुकियों के हाथ हिलानेसे वैसे वचन कहने में किये गये भी निषेधको नहीं समझा। [ यद्यपि बूढे कञ्चकियोंने वैसी ( सुरतार्थ इन्होंने हम लोगोंको बहिष्कृत कर दिया है ऐसी) बातको कहनेसे हाथको हिलाकर उन्हें निषेध किया, किन्तु उन दोनों सखियोंने उनका हाथ बुढ़ापेके कारण काँप रहा है, ऐसा मनमें धारणा करनेसे उनके अभिप्रायको नहीं समझा ] // 137 //