________________ 1362 नैषधमहाकाव्यम् / देखा ? इस कारणसे हो तुम मखियोंपर ( अथवा-इस कारणसे तुम सखियोंपर ही) विश्वास मत करो, (किन्तु एकमात्र मुझपर ही विश्वास करो ) // 121 // आलोपि कलयाऽपीयं पति लपति क्वचित् / वयस्येऽसौ रहस्यं तत् सभ्ये विस्रभ्यमीहशि / / 122 / / आलापीति / कलयाऽपि इयं भैमी, आलापि अवादि, किमालापि ? इत्याहहे दमयन्ति ! असौ अयम् , पतिः तव भर्ता नलः, क्वचित् कुत्रापि, न आलपति न कथयति, गोप्यरात्रिवृत्तमिति शेषः / अत एव ईदृशि एवम्भूते, सभ्ये सज्जने, वयस्ये सख्यो, तत् पूर्वोक्तम् , रहस्यं गोप्यवृत्तान्तः, विस्रभ्यं विश्वसनीयम् विश्वस्य वक्तव्यमेवेत्यर्थः / अत्र विपरीतलक्षणया-अमी ते पतिः सर्वत्रैव तव रहस्यमालपति, अत एव ईदृशि असभ्ये वयस्ये न विस्त्रभ्यमेव इति / 'कृत्यल्युटो बहुलम्' इति भावे कृत्यप्रत्ययः, तस्याकित्वान्नकारलोपः॥ 122 // ___ 'कला' ने भी दमयन्तीसे ( मधुर परिहास एवं काकूक्तिके साथ ) कहा कि- 'यह पति (नल ) कहीं पर रहस्य ( तुम्हारी सम्भोगादि वार्ता ) को नहीं कहते हैं, इस कारण ऐसे सभ्य मित्रमें ( तुम्हें ) विश्वास करना चाहिये / (विपरीत लोणासे-ये तुम्हारे रहस्यको सर्वत्र कह देते हैं, अत एव ऐसे असभ्य साथीपर विश्वास नहीं करना चाहिये )' / [ यहांपर भी 'कला' ने नलोक्त पूर्ववचन ( 20 / 121 ) का वैसा ही समुचित उत्तर देकर नलका पुनः पराजित किया है ] // 122 // इति व्युत्तिष्ठमानायां तस्यामूचे नलः प्रियाम् / भण भैमि ! बहिः कुर्वे दुर्विनीते गृहादमू ? / / 123 / / इतीति / तस्यां कलायाम् , इति इत्थम , व्युत्तिष्ठमानायां विरोधम् आचरत्याम् , तुल्यभावेनैव विपक्षवत् व्यवहाँ प्रवर्त्तमानायामित्यर्थः। 'उदोऽनूर्वक मणि' इत्यात्मनेपदम् / नलः नैषधः, प्रियां भैमीम् , ऊचे कथयामास। किमिति ? भैमि ! हे दमयन्ति ! दुविनीतं उद्धते, अमू एते सख्यौ, गृहात् प्रकोष्ठमध्यादित्यथः / बहिः कुर्वे ? निर्वासयामि ? इति काकुः, भण बहि, आदिश इत्यर्थः / / 123 / / इस प्रकार इस 'कला' के विरोध करते रहनेपर नलने प्रिया ( दमयन्ती ) से कहा कि-'हे दमयन्ति ! इन दोनों दुविनीत सखियोंको घर ( इस प्रकोष्ठ ) से बाहर करता हूँ ? कहा [ यहांपर नलने उन सखियोंको बाहर करके सम्भोग करने के लिए दमयन्तीसे सम्मति चाही है, इसी कारणसे यहां वर्तमानकालिक 'कुर्वे ( करता हूँ) क्रियाका प्रयोग किया है। शिरःकम्पानुमत्याऽथ सुदत्या प्रीणितः प्रियः। चुलुकं तुच्छमुत्सर्य तस्याः सलिलमक्षिपत् / / 124 / / शिर इति / अथ नलवाक्यानन्तरम्, सुदत्या शोभनदन्तया, भैम्या इति शेषः / 1. 'अलापि' इति पाठान्तरम् /