________________ विंशः सर्गः। 1361 मुख संस्थाप्य निःशब्दं यथा तथेत्यर्थः / बहु दीर्घकालं व्याप्येत्यर्थः / आचख्यतुः कथयामासतुः // 119 // ___या 'कला' के इस प्रकार (20 / 115-118) स्ववञ्चनदोषका परिहार करने ) के बाद दोनों मखियों ( 'कला' तथा उप्तकी बुलायी हुई दूसरी सखी, दमयन्नी तथा नलके सम्भोग वृत्तात के सुननेसे ) बार-बार आश्चर्यित होती हुई तथा स्मित करती हुई सुनी गयी ( नलोक्त सम्भोग कथा ) को एक दूसरे के थानमें बहुत देर तक कहने लगीं / / 119 / / अथाख्यायि कलासख्या कुप्य मे दमयन्ति ! मा / कर्णाद्वितीयतोऽप्यस्याः संगोप्यैव यदब्रम् / / 120 / / अथेति / अथ अन्योऽन्यकथनानन्तरम्, कलासख्या कलायाः वयस्यया, आख्यायि उक्तम् / किमिति ? हे दमयन्ति ! मे मह्यम्-मा कुप्य न क्रद्धा भव, स्वमिति शेषः / 'क्रवद्रह-' इत्यादिना सम्प्रदानत्वाच्चतुर्थी / यत् यस्मात् , द्विती. यतः द्वितीयात् , कर्णात् श्रवणात् अपि, सङ्गोप्य गोपायित्वा, अस्याः एव कलायाः एब, अब्रुवं रहस्यम् अकथयम् // 120 // ___ इस ( परस्पर में कानमें भाषण करने ) के बाद कलाकी सखीने बहुत देर तक कहा'हे दमयन्ति ! मुझपर मत क्रोधित होवें, क्योंकि मैंने इसके दूसरे कानसे भी छिपाकर ही कहा है अर्थात् मैंने इस प्रकार कहा है कि दूसरे व्यक्तिको कौन कहे, इसके दूसरे कान तकने भा नहीं सुना है। [हम प्रकार दमयन्तीसे कहकर उसने परिहास ही किया है] // 120 / / प्रियः प्रियामथाचष्ट दृष्टं कपटपाटवम् ? / वयस्ययोरिदं तस्मान्मा सखोब्वेव विश्वसोः / / 121 / / पिय इति / अथ कलामखीवाक्यानन्तरम् , प्रियः कान्तो नलः प्रियां कान्तां भौम, आचट अवोचत् , किमिति ? हे प्रिये ! यस्योः लख्योः, इदं त्वत्समहमेध चरितन, कपटपाटवं वञ्चनाचातुय्यम्, दृष्ट ? अवलोकितम् ? इति काकु / तामात एच-व्यवहारदर्शनात् , सतीषु वयस्यासु, मैव नैव, विश्वलीः विश्वास कुल सदमेव विश्वासः कर्तव्य इति भावः ! एनसेमाङि लुङि 'न माङयोगे' इति अडागमनिषेधः / 'अतो हलादेलंघोः' इति वृद्धी प्राप्तायां 'ह्मयन्तक्षणश्वस-' इत्यादिना निषेधः // 121 / / 'कल' की सखीके ऐता ( 201120 ) पहने ) के बाद प्रिय प्रिया नल ने दमयन्ती / कहा--(तुमने अपने सामने ही अपनी इन बोनों सखियों के कपटचार्यको 1. 'सङ्गोप्येवम्' इति पाटान्तर / 2, अन्न कलारूपिण्या सख्या' इत्याशयात्मक कलथैव सख्या वा' इति पक्षान्तरार्थक 'प्रकाश'व्याख्यानं 'अलापि कल्याऽपीयं... ..(201122) इति वक्ष्यमाणत्वाञ्चिन्त्यं सुधीभिः।।