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________________ 1354 नैषधमहाकाव्यम् / अथ स्वपृष्ठनिष्ठायाः शृण्वत्या नैषधाभिधाः / नलमौलिमणौ तस्या भावमाकलयत् कला / / 105 // अथेति / अथ सख्याह्वानानन्तरम् , कला तन्नामसखी, स्वपृष्ठनिष्ठायाः निजप. श्चाद्भागस्थितायाः, कर्णपिधानार्थं कलाया एव पश्चाद्देशे अवस्थितायाः सत्याः इत्यर्थः / नैषधस्य नलस्य, अभिधीयन्ते इत्यभिधाः वचनानि / 'आतश्योपसर्गे' इति अप्रत्ययः / शृण्वत्याः आकर्णयन्त्याः, तस्याः, भैम्याः, भावं कोपादिचेष्टाम्, नलस्य नषधस्य, मौलिमणौ मुकुटस्थरत्ने, आकलयत् अपश्यत् / पुरोवर्तितया तत्र तस्याः प्रतिफलनादिति भावः // 105 // इस ( सखीको बुलाने, या-सखीद्वारा नलोक्त शेष वाक्यको सुनने ) के बाद 'कला'ने अपने पीछे स्थित हुई तथा नल के ( अवशिष्ट ) बातको सुनती हुई उस ( दमयन्ती ) की चेष्टा (नलोक्त अवशिष्ट बातको सुननेसे उत्पन्न हुए क्रोधादि भाव ) को ( अपने सामने बैठे हुए ) नलके मुकुटमें जड़े हुए रत्नोंमें ( प्रतिबिम्बित होनेसे ) देखा, (किन्तु नलोक्त अवशिष्ट वचनको अपना कान दमयन्तीके हाथोंसे बन्द रहने के कारण सुना नहीं)॥ 105 / / प्रतिबिम्बेक्षितैः सख्या मुखाकूतैः कृतानुमा / तद्ब्रीडाद्यनुकुर्वाणा शृण्वती चान्वमायि सा / / 106 / / प्रतीति / सा कला, प्रतिबिम्बे नलमौलिमणिगतसखीप्रतिच्छयायाम , ईक्षितैः दृष्टैः, सख्याः भैम्याः, मुखाकूतैः लज्जारोषादिव्यञ्जकवदनभङ्गिभिः लिङ्गः, कृतानुमा इदमिदमयं वक्तीति विहितानुमाना, दमयन्तीकत ककर्णपिधानेन श्रवणासामर्थ्या. दिति भावः / अत एव तस्याः दमयन्त्याः, व्रीडादि लज्जास्मितादिभावम् , अनुकु. र्वाणा अनुकरणशीला सती, दमयन्त्यनुकरणेन स्वयमपि तादृशभावं प्रकटयन्ती सतीत्यर्थः / 'ताच्छील्यवयोवचनशक्तिषु' इति ताच्छील्ये चानश , अन्यथा 'अनुप राभ्यां कृतः' इति परस्मैपदप्रसङ्गात् / शृण्वती इव साक्षादाकर्णयन्ती इव, कर्मयोः पिहितयोरपि नलवचनं स्पष्टं शृण्वती इवेत्यर्थः / अन्वमाथि अनुसिता, नकदम. यन्तीभ्यामिति शेषः.॥ 106 // ( सामने बैठे हुए नलके मुकुटमणिके ) प्रतिबिम्ब में देखे गये उस ( दमयन्ती ) के मुखके भावों ( नलोक्त शेष रहस्यको सुननेसे उत्पन्न हास क्रोधादि चेष्टाओं) से अनुमान करके उस ( दमयन्ती ) की लज्जा आदिका अनुकरण करती हुई उस ( कला) को ( जल तथा दमयन्तीने नलोक्त अवशिष्ट वचनको) सुनती हुई-सी समझा। [यद्यपि अपने कानोंको बन्द किये जानेसे कलाने नलोक्त शेष बातको नहीं सुना, किन्तु उसको सुनकर की गयी पृष्ठस्थ दमयन्तीकी चेष्टाओंको सम्मुखस्थ नलमुकुट रत्नमें देखकर वैसा ही अनुकरण करने लगी, जिससे नल तथा दमयन्तीने अनुमान किया कि यह कला कान बन्द करनेपर मी नलोक्त वचनको सुन रही है ] // 106 //
SR No.032782
Book TitleNaishadh Mahakavyam Uttararddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas Shastri
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1997
Total Pages922
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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