________________ विंशः सर्गः। 1353 दमयन्तीसे अपने बन्द हुए कानोंको छुड़ा सकूँगी इस अभिप्रायसे ) बलयुक्त हो गयी। [ लोकमें भी आपद्ग्रस्त कोई व्यक्ति अपने पक्षके व्यक्तिको देखकर आपत्तिसे छूट जानेकी आशासे सबल हो जाता है / दमयन्तीके कोमल हार्थोसे कलाके कान अच्छी तरह नहीं बन्द हुए थे, अतः उसने सखियोंमें-से स्फुट हंसनेवाली अपने पक्षकी सखीके हासको सुनकर उसे पहचान लिया, अथवा--दमयन्तीके हाथोंसे कानोंको बन्द होनेसे पहले ही सुनकर उसे पहचान लिया, ऐसा समझना चाहिये ] // 102 // साऽऽहूयोच्चरथोचे तामेहि स्वर्गेण वञ्चिते ! / पिब वाणीः सुधावेणीनूपचन्द्रस्य सुन्दरि ! // 103 / / सेति / अथ स्वरप्रत्यभिज्ञानानन्तरम् , सा कला, तां सखीम् , उच्चैः तारम् , आहूय कार्य, हे स्वर्गेण स्वर्गसुखेन, स्वर्गसुखजनकनलवाक्याश्रवणेनेत्यर्थः। वञ्चिते ! प्रतारिते! सुन्दरि ! हे सौन्दर्यशालिनि ! एहि आगच्छ, नृपचन्द्रस्य राजेन्दोः सम्बन्धिनीः, वाणीः वाक्यस्वरूपाः, सुधावेणीः अमृतरसप्रवाहान् , पिब स्वद, यथेच्छम् आकर्णय इति यावत् , इति ऊचे कथयामास, स्वर्गे चन्द्रात् निःस. तस्य अमृतस्य तुल्यं राजचन्द्रमुखात् उद्गतं वाक्यसुधाप्रवाहम् अनुभूय स्वर्गसुख. मनुभवेत्यर्थः // 103 // ___ इस ( स्वपक्षीया सखीको पहचानकर साहस आ जाने ) के बाद उस 'कला' ने उसे ( स्वपक्षीया सखीको ) ऊँचे स्वरसे बुलाकर कहा-(दूरस्थ होनेके कारण ) हे स्वर्गसे वञ्चित सुन्दरी ! आओ नृपचन्द्र (नल ) के अमृतप्रवाहरूपी वचनोंका पान करो अर्थात् इनके अमृततुल्य कर्णमधुर वचनोंको सुनो // 103 // साऽशृणोत्तस्य वाग्भागमनत्यासत्तिमत्यपि / कल्पग्रामाल्पनिर्घोषं बदरीव कृशोदरी / / 104 // सेति / कृशोदरी क्षीणमध्या, सा आहूता सखी, अनत्यासत्तिमती अपि ईषद्रस्था अपि, तस्य नलस्य, वाग्भागं ततः परं कथितं वाक्यांशम् , कल्पग्रामस्य वदरिसमीपवर्तिनः कल्पाख्यस्य ग्रामस्य, अल्पनिर्घोषं मन्दध्वनिम् , किञ्चिदूरत्वादनुचकलरवमित्यर्थः / बदरी इव बदरिकाश्रमस्थलोकसमूह इव, अणोत् आकर्णयत् / सन्निकृष्टेषु ग्रामेषु यथा परस्परमालापाः श्रयन्ते तद्वदोषीदित्यर्थः // 104 // ___इस ( कलाके पुकारने ) के बाद कुछ दूरपर स्थित भी कृशोदरी उस ( कलाकी सखी) ने उस ( नल ) के वाक्यांश ( अवशिष्ट वाक्य ) को उस प्रकार सुना, जिस प्रकार थोड़ी . दूरपर स्थित स्वल्पजनयुक्त बदरिकाश्रमके लोग 'कल्पग्राम' (या-कल्पनामक ग्राम) के जनरवको सुनते हैं। [ 'बदरिकाश्रमवासी लोग थोड़ी दूरपर स्थित 'कल्पग्राम' के मुनियोंकी कलकल ध्वनि सुनते हैं। ऐसी वहाँके तीर्थवासी लोगोंमें प्रसिद्धि है ] // 104 //